Nautanki Kitab maut ka jhula उर्फ जोड़ का तोड़

 अमरजीत नौटंकी कथा कहानी
में आपका स्वागत है 

आज हम आपको Nautanki book की एक और शानदार नौटंकी कहानी के बारे में बताएंगे
जिस का नाम है मौत का झुला उर्फ जोड़ का तोड़ आइए दोस्तों हम इस नौटंकी किताब की
   कहानी को संगीत के माध्यम से विस्तार  से जाने।।

नौटंकी 

संगीत 

मौत का झूला
उर्फ
जोड़ का तोड़


॥ मंगलाचरण |

दोहा- विनय करूँ कर जोर कर, . दधि माखन के चोर। तुम्हें कंधइया मैं कहूँ, या कि नन्दकिशोर ।। चौ०-या कि नन्दकिशोर नन्द बाबा के कृष्ण कंधइया । आज सभा में लाज राखि द बलदाऊ के भइया ।। पापी दीन मलीन दुखी जन के उद्धार करइया । गुरु रामलोचन' हैं अब तो मुझको छन्द सिखइया ।। दौड़-तुम्हीं गिरधर गोपाला, तुम्हीं सन्तन प्रतिपाला ।

तेरा मात्र सहारा ! सन्तलाल' और दास 'त्रिफला' अन्तिम समय पुकारा।।

कवि

दोहा-कंचनपुर की दास्ताँ, सुनो लगा के ध्यान। कंचन सिंह राजा हुये, उसी देश दरम्यान ।। चौ०-उसी देश दरम्यान प्रजा करती उनकी इज्जत थी।
रजनी रानी कंचन सिंह की सहनशील औरत थी।। पापी दुष्कर्मों से हरदम उन्हें सख्त नफरत थी। प्रजा रहे खुशहाल हमेशा नृप की ये हसरत थी।। 
ब0त0-एक दिन राजा बैठे थे दरबार में, एकाएक उनको चक्कर है आने लगा। पीर उनके कलेजे में होने लगी, आँखों के सामने तम है छाने लगा ।।
दौड़-कंचन सिंह घबड़ाये, कह राम राम चिल्लाये।   मन्त्री जी ने आकर ।
राजा कंचन सिंह के आगे बोले शीश झुकाकर ।


खड्ग सिंह
कौ०- महाराज क्या आपको हो गया है। उदासी खामोशी क्यों दिल दरमियाँ है ।। अजी बात क्या है जो दम घुट रहा है। क्या हो गया है जी क्या हो गया है ।। 

कंचन सिंह
दोहा-अब मैं जिन्दा न रहूँ, खड्ग सिंह बलवीर । 
धड़क रहा है दिल मेरा, उठे कलेजा पीर ।। 
कौ०-खड्ग सिंह तुमको यही है बताना।
तुम्हें मन्त्री का फर्ज अब है निभाना।। 
मेरी रानी गर्भवती हो चुकी है। 
कभी भी न शंका कोई दिल में लाना।।

ड्रामा मन्त्री जी ! अगर लड़की पैदा होगी तो उसकी शादी किसी राजा के यहाँ कर देना और तुम कुशल पूर्वक राज्य करना। 
अगर लड़का पैदा होगा तो उसे अपनी औलाद की तरह लालन पालन करना । राज्य का कार्यभार सँभालने के काबिल हो जायेगा तो जब वो यह राज्य उसे सौंप देना और तुम जैसे रह रहे हो उसी तरह रहना।

कंचन सिंह मर जाते हैं, रानी का आना ) 

रजनी ( विलाप करते हुये

ब० त०-हाय भगवान कैसा सितम ढा दिया, बिन पती मेरा संसार सूना हुआ। कौन सी गाज ऊपर गिराया मेरे, दुख का बोझा मेरे सर पर दूना हुआ।। 

लिखने वाले लिखा था क्या तकदीर में, इस अभागिन पे थोड़ा न खाये रहम। बनके बेपीर दुनियाँ उजाड़ी मेरी, क्यों न की मुझपे अपनी निगाहे करम।। लुट गई मिट गई मिल गई धूल में, शामे गम आँखों के सामने छा गया। 'त्रिफला' क्या से क्या दिन दिखाया मुझे, गरदिशों का है तूफान अब आ गया।।

खड्ग सिंह
बoत० - दुनियाँ की रीति है ये सुनो मालकिन, जो भी आया यहाँ एक दिन जायेगा। आपका रोना धोना ये बेकार है, नासवाँ दुनियाँ में कोई न टिक पायेगा ।। बन्द कर रोना धोना महारानी जी, लाश गंगा की गोदी में दफनाइये। हो रही देर ज्यादा न देरी करो, काम किरिया अजी इनकी करवाइये ।।

कवि

दोहा-कफन दफन है हो गया, बीत गया नौ मास । रजनी रानी की हुई, पूरण सारी आस 
रानी को पैदा हुये हैं दो सुन्दर लाल।
राजमहल पूरा हुआ, खुशियों में खुशहाल ।।

( मन्त्री खड्ग सिंह शाही पोशाक में दरबार में बैठा है। सेनापति आता है। सेनापति-ड्रामा-मन्त्री जी महाराज खड्ग सिंह की जय हो। खड्ग सिंह-ड्रामा-आइये आइये सेनापति ! आपका ही इन्तजार था।

खड्ग सिंह
ब०त० राज्य का क्या समाचार सेनापति, प्रजा को तो नहीं कोई संताप है। रानी को बच्चा पैदा हुआ या नहीं, देश में तो नहीं हो रहा पाप है।।

सेनापति
ब०त०-राज्य का जो समाचार सो ठीक है, आपकी सार जनता भी खुशहाल है। सबसे ज्यादा खुशी का ये सन्देश है, रानी के गर्भ से जन्मे दो लाल हैं ।।

खड्ग सिंह
ब०त०-क्या सुनाया मुझे आज सेनापती, क्या कहा रानी के जन्मे दो लाल हैं। मेरा अरमान सारा मिला खाक में, रानी के दोनों बच्चे मेरे काल हैं ।।

सेनापति
ब०त०-आप क्या कह रहे हैं महाराज जी, खाक में मिल गया कैसे अरमान है। आपके काल क्यों रानी के लाल हैं, सेनापती इसके बारे में अन्जान है।।

खड्ग सिंह

ब0त0-बच्चे के बदले बच्ची अगर जन्मती, मान्यता से चमक जाता सेनापती। राज्य करता महाराज बन उम्र भर, मैं ही मैं जग में दिखलाता सेनापती ।।


सेनापति
ब०त०-आपको ऐसा कहना नहीं चाहिए, इस तरह सोचा जाना गलत ख्याल है। खाके टुकड़े पले जिसके हम और तुम, उसपे अन्याय करना बुरा ख्याल है ।। 

खड्ग सिंह
ब० त०-छोड़ो दुनिया का चक्कर ये सेनापती, काम ऐसा करो जिसमें कल्यान हो। ताकि सुखमय गुजर जाये ये जिन्दगी, बन रहे आप नाहक में नादान हो ।। 

सेनापति
दोहा-महाराज जिस काम में है मेरा कल्यान । काम वही बतलाइये, मानूँगा एहसान || 

खड्ग सिंह 
दोहा-सेनापति जी ध्यान से सुनिये मेरी बात।
रानी के दोनों पिसर, चुरा लाओ इस रात ।। कौ० किसी वशर से नहीं बात ये बताना है। चुरा के दोनों पिसर मेरे पास लाना है ।। 
काम इतना करो हजार हीरे पाओगे। 
तुम्हारा फर्ज जो है तुमको वही निभाना है।। 

सेनापति
कौ०-कभी दोनों पिसर चुरा के मैं न लाऊँगा। अभी चल करके रानीजी से सब बतलाऊँगा ।। खाके टुकड़ा पला हूँ जिसका अपने जीवन में। उसी के सदके में ये जिन्दगी बिताऊँगा ।। 

खड्ग सिंह (गुस्से में )
ब0त0-जो कहा सो कहा ठीक सेनापती, अब नहीं का न नगमा सुनाना कभी। चोरी दोनों ललन की तुम्हें करना है, रानी से बात ये न बताना कभी ।।

सेनापति
ब०त०-चोरी के बदले मन्त्री महाराज जी, अपनी जाँ को गँवाने को तैयार हूँ। आस्माँ औ जमीं चाहे जाये बदल, दोउ ललन को चुराने से इन्कार हूँ ।।

खड्ग सिंह
ब0त0-मानोगे न मेरी बात सेनापति, इस घड़ी कोड़ों से मार खाना पड़े। अभी बदहोश हो होश हो जायेगा, बनक कैदी जब जेल जाना पड़े।

सेनापति ड्रामा-मैं बार बार कहता हूँ कि ये चोरी मैं नहीं कर सकता हूँ। ( खड्ग सिंह सेनापति को कैद करवा लेता है और काफी पिटाई
करके जेल भेजवा देता है )

खड्ग सिंह ड्रामा- ठीक है, सेनापति ने इनकार कर दिया तो कोई बात नहीं है। अब ये काम मैं खुद करूंगा आज मुझे दोनों बच्चों को जरूर चुराना है। 

सीन बनाइये-रानी अपने दोनों बेटों को बगल में लेटाये लोरी गा ग के सुला रही है।

रजनी
भजन-सो जा दोनों लाल बितल आधी रैना |टेक सुखी भी सोये दुखी भी सोये सोये तोता मैना। 
मेरे लाल तुम क्यों रोते हो, खोले दूनउ नैना ।। सोजा ०। तन भी सोये मन भी सोये, सोये मीठे बैना । हर्ष भी सोये गम भी सोये, सोइ गये सब चैना ।। सोजा ०। चल भी सोये अचल भी सोये, सोये 'त्रिफला' है ना। कहते 'सन्त' छोड़ दे बेटा रोज रोज के धैना ।। सोजा ०।

( दोनों बच्चों सहित रजनी रानी सो जाती है। इधर खड्ग सिंह आकर रानी के दोनों बच्चों को चुरा ले जाता है। रानी जागती है बच्चों को न पाकर) रजनी ड्रामा ( द्वारपाल से ) क्यों शम्भू 'मेरे दोनों बेटे कहाँ हैं ? कौन ले गया है ?

शम्भू-ड्रामा-महारानी जी ! मुझे नहीं मालूम कि आपके दोनों बेटे कहाँ हैं और कौन ले गया ?

रजनी-ड्रामा-( घबड़ाते हुए ) क्या तुम बता सकते हो, कि आज रात यहाँ कौन आया था ?

शम्भू-ड्रामा वैसे तो कोई नहीं आया था, केवल घर से हीं निकलते हुए महाराज मन्त्री जी को देखा है। ( रजनी खड्ग सिंह के पास चल देती है, 

उधर खड्ग सिंह दोनों बच्चों को मार कर रघू नौकर से )

ग०-मेरा हुक्म जल्दी रग्घू बजाओ। नदी में अभी दोनों शव फेंक आओ।।

(रग्घू नदी में दोनों लाश फेंकने जाता है इधर रानी खड्ग सिंह के पास आती है )

खड्ग सिंह
ब०त०- आपको क्या हुआ है महारानी जी, हो रही कैसे आँखों से बरसात है। दरहकीकत बताओ छिपाओ नहीं, आप क्यों रो रहीं बोलो क्या बात है ।।

रजनी
ब0त0-मन्त्री जी क्या कहूँ कुछ न जाये कहा, जो सितम ढा गई आज की रात है। मेरे दोनों पिसर लापता हो गए, आँखों से इसलिए होती बरसात है। आपको गरचे मालूम मन्त्री जी हो, मेरे बेटे कहाँ हैं बताओ मुझे। चूमती पैर हूँ आपका इस घड़ी, कुछ बताओ मुझे कुछ बताओ मुझे।।

खड्ग सिंह
ब०त०-रानीजी मुझको कुछ भी नहीं है पता, आपके हैं कहाँ दोनों नूरे नजर। मैं अभी ही अभी उठ रहा सोयकर, • सच बताया नहीं राखी कोई कसर ।।

ब0त0-मन्त्री जी आप भी झूठ क्यों बोलते, मुझको मालूम तू राखी न कोई कसर । आयें थे तुम महल मेरे इस रात में, और तुम लाए हो दोनों नूरे नजर ।।

ब० त०- रानीजी इस तरह से मुझे न कहो, मैं न ऐसा कभी भी सितम ढाऊँगा। आज तक जिसके खा करके टुकड़े पले, उसके संग ये न गद्दारी कर जाऊँगा ।।

रजनी
ब०त० मन्त्री हमदर्दी मुझको दिखाओ नहीं, तुम ही तुम चोरी कर लाये दोनों पिसर। सोचते हो किसी को ये मालूम नहीं, मुझको मालूम हुआ तू है मीठा जहर ।।

( खड्ग सिंह क्रोध से )
ब० त०- बस खबरदार रानी जुबाँ रोक लो, झूठा इल्जाम मुझको लगाओ नहीं। वर्ना गुस्सा कहीं मेरे लग जायेगा, रानी वानी तुझे तब मैं मानूँ नहीं ।।

रजनी

-ड्रामा-खड्ग सिंह ! मैं हमेशा कहूँगी कि तुमने मेरे बेटों को चुराया है और तुम चाहते हो कि दोनों बच्चों को गायब करके ये राज्य मै करूँ।

खड्ग सिंह-ड्रामा-हाँ, मैं सच में यही चाहता हूँ। तुम जो करना चाहती हो कर सकती हो ।

रजनी (करुणा से )

ब० त० मन्त्रीवर ले लो ये राज्य तुम शौक से, राज्य की न हमें कोई दरकार है। अपना जीवन बिताऊँगी जंगल में मैं, सिर्फ दोनों पिसर से बड़ा प्यार है ।।

( हाथ जोड़कर )
ब०त०-दे दो मन्त्री मुझे मेरे दोनों पिसर,
छोड़कर राज्य ये मैं चली जाऊँगी। 
माँगकर भीख जग में गुजारा करूँ,
किन्तु इस राज्य में न कभी आऊँगी ।।

कवि

दो०- रानी की मन्त्री नहीं, कुछ भी सुना पुकार । पैर से धक्का मार के, महल से दिया निकार ।। खड्ग सिंह-ड्रामा-मुझे मालूम हो गया कि सेनापति ने रानी से सारा पोल बता दिया। ठीक है उसको फाँसी करवा के तब छोडूंगा ।।

रजनी
ग०-ये दिन क्या दिखाया सितम ढाने वाले। रहम क्यों न खाया रहम खाने वाले।। मुसीबत दिया क्या है सर पे मुरारी। तनिक से जखम का किया घाव भारी ।। हो जाइये सहारा बंशी बजाने वाले।। रहम० || हुआ मेरा दुश्मन है सारा जमाना। मुझे 'रामलोचन' न तुम भूल जाना।। 'सन्तलाल' तुम ही बदला चुकाने वाले।। रहम० ||

कवि
ब०त०-रजनी रानी मुसीबत की मारी सुनो, विश्व में है भटकने लगी दर बदर। जेल रक्षक उधर सो रहे चैन से सेनापति जेलखाने से भागा इधर ।। 

ग०-भगा जा रहा सेनापति डर के मारे । भटकता हुआ पहुँचा नदिया किनारे ।। किनारे ही एक बच्चा बेहोश पाया। समाया नहीं फूला खुशियों के मारे ।। सेनापति-ड्रामा- ( पहचानते हुये ) या भगवान ! ये बच्चा तो

महारानी का मालुम पड़ता है। मुझे मालुम हो गया कि इस बच्चे को चंडाल मन्त्री ने मारकर फेंक दिया है। ठीक है ! अब मैं इस बच्चे को पालकर अपना बदला चुकाऊँगा।

ग०-मुरली वाले तेरी कैसी माया । जिन्दगी का सहारा मिला है ।। डगमगाती हुई कश्तियों को। जैसे कोई किनारा मिला है ।।

'सेनापति आनन्दित होते हुए अपने घर चला जाता है इधर खड्ग सिंह )

खड्ग सिंह-
ड्रामा ( रग्घू से ) रग्घू ! जाओ सेनापति को मेरे सामने लाओ, उसकी आज फाँसी होगी।

( रग्घू जेल में जाता है और तुरन्त ही हाँफते हुये आता है. रग्घू-ड्रामा-महाराज ! गजब हो गया, जेल का सिक्या फैला है और सेनापति गायब है। कमरे में केवल यही चिट्ठी पड़ी थी।

खड्ग सिंह-ड्रामा-क्या कहा ? सेनापति गायब हो गया ? खैर, पढ़ो इस चिट्ठी में क्या लिखा है ?

रग्घू-ड्रामा याद रखना खड्ग सिंह हत्यारे, अगर मैं जिन्दा रहूँगा तो किसी न किसी दिन इसका बदला चुका लूँगा।

खड्ग सिंह-ड्रामा-मैं कहता हूँ कि बदला चुकाने से पहले उसको मौत के घाट पहुँचा दूँगा। ( नौकरों से ) मेरा हुक्म है जहाँ कहीं भी सेनापति दिखाई दे उसे गोली मार दिया जाय।

कवि
दो०- किसी तरह से बीत गया, दिवस है बाइस साल। बी० ए० में पढ़ने लगा, सेनापति का लाल।। (सेनापति बैठा रहता है मोहन आता है )

मोहन-ड्रामा- पिता जी प्रणाम ! सेनापति-ड्रामा-बेटे ! खुश रहो, कहो आज स्कूल क्यों नहीं गये ?

मोहन
गजल- पिताजी कल से होगी परीक्षा हमारी।     किया कानपुर जाने की है तैयारी ।।
कानपुर सेन्टर हमारा है पड़ा इस वर्ष में।
तीन सौ रुपया पिताजी दो मुझे इस हर्ष में ।। यही आपसे आरजू है हमारी ।। किया ।।

सेनापति
गजल-इस साल ऐसी मुसीबत है आई। 
मेरे लाल घर में नहीं एक पाई।।
खूब पढ़ो उन्नति करो मैं सोचता जरूर हूँ।
क्या करूँ बेटा पढ़ाने में तुम्हें मजबूर हूँ ।। किया काम जाता न आई बुढ़ाई ।। मेरे0 ।। 

मोहन
तीन सौ रुपया के खातिर हे पिता इस साल की। गर्द हो जाये पढ़ाई आपके इस लाल की ।।
यही सबसे ज्यादा मुझे गम है भारी ।। किया0।।

सेनापति
खैर जब ये बात है तो सुन मेरे नूरे नजर । कर्ज ले करके पढ़ाऊँगा तुम्हें मैं उम्र भर ।। मिटी है न जग में खुदा की खुदाई ।। मेरे ० ।।

मोहन
ब०त०-देर होती पिताजी न देरी करो, शाम की ट्रेन से हम चले जायेंगे। जाके लाओ कहीं से अभी रूपया, एक महीने में वापस चले आयेंगे ।।

सेनापति
बoत० देर होती है गरचे तुम्हें लाडले, जाओ जल्दी नहीं ट्रेन छुट जायेगी। भेजूँगा रूपया कर्ज ले करके कल, में देखेंगे जो विपत आयेगी ।। बाद

मोहन चला जाता है। सेनापति कर्ज की तलाश में चल देता है। 

उधर डाकू सोहन सिंह अपने गिरोह में बैठा है।

सोहन सिंह-ड्रामा-मेरे बहादुरों ! आज की बाजी तुम लोगों ने बड़ी वीरता के साथ जीता है। ये लो हीरे की थैली। सब कोई बराबर बराबर बाँट लो।

सीन बनाइये सेनापति उसी रास्ते जा रहा है जहाँ सब डाकू हीरे बाँट रहे हैं, यह देखकर सेनापति छिपकर सोहन सिंह को पहचानते हुये ) सेनापति-ड्रामा-या भगवान ! ये डाकू कौन है ? 
मुझे तो ऐसा लगता है जैसे हमारा बेटा मोहन है।


सोहन सिंह 
शैर-ला मेरे हाथों में दे रंगीन बोतल जाम की। पहले लग जाने दे फिर बातें करना काम की ।

शैर-आपकी खिदमत में बन्दा ला रहा शराब है। यह लो पी लो बियर जो रंगीन ये शबाब है।। 

सोहन सिंह ज्योंही बोतल ओंठ से लगाता है त्योंही सेनापति गुस्से में आकर सोहन सिंह को 
चाँटा मारता है 

सेनापति
ब०त०-आज मोहन तुझे सूझी है क्या बता, कौन सी कर रहा है पढ़ाई यहाँ। कानपुर क्या यहीं है अरे बेशरम, बोल दे ऐसी तालीम पाई कहाँ जानता चोर डाकू तू बदमाश है, कर्जा लेकर के तुझको पढ़ाता नहीं। ऐ शराबी हरामी तुम्हारे लिये, इतनी जिल्लत कभी भी उठाता नहीं।।

सोहन सिंह ( साथियों से )
ब०त०-दोस्तों कुछ समझ में न आता मेरे, बक गया क्या •बुड्ढा मेरे सामने। इसका दीमाग तो ठीक है या नहीं, ये इसकी हरकत अभी देखा खुद आपने ||

सेनापति
ब0त0-बालेपन से खिलाया पिलाया तुम्हें, पालकर कर दिया जब सयाना तुम्हें । अन्धा होके नशे में न पहचानता, छिः छिः ऐसा था हरगिज न जाना तुम्हें ।।

सोहन सिंह
ब0त0-बुड्ढे तुमको न मालूम कि मैं कौन हूँ, इसलिये तू उगलता जहर जा रहा। कौन मोहन कहाँ बोल मोहन तेरा, सोहन सिंह का जरा तू न डर खा रहा।। 
ड्रामा-अगर जिन्दा जाना चाहते हो तो चुपचाप चले जाओ वर्ना गोली से...

सेनापति
दोहा-चरण चूमता आपका, सोहन सिंह सरदार। गलती मेरी माफ हो, कहूँ मैं बारम्बार ।।
कौ०-हुआ अनजान में अपराध ये सरदार सोहन सिंह । नहीं पहचान पाया आपको इस बार सोहन सिंह ।। आपका चेहरा मेरे बेटे का चेहरा एक है। यही कारण था धोखा हो गया सरदार सोहन सिंह ।।

सोहन सिंह
कौ०-कभी भी भूलकर ऐसी न गल्ती करना आइन्दा। चले जाओ चले जाओ कहे सरदार सोहन सिंह ।। 

( सेनापति चल देता है। रास्ते में सेनापति को देखकर )

खड्ग सिंह
ब0त0-रुक जा रुक जा अरे नीच सेनापती, एक तिल भी पाँव आगे बढ़ाना नहीं। मौत तेरी तेरे सामने आ गई, चूक सकता है मेरा निशाना नहीं। इतने दिन जो जिया छिप के संसार में, आज से जीना दुश्वार हो जायेगा। तेरी औकात क्या जो भगा जेल से, बच के जिन्दा यहाँ से न जा पायेगा।। 

कवि

शैर-देख सेनापती खड्ग सिंह को है घबराने लगा। जान रक्षा के लिये स्कीम बैठाने लगा।। ( सेनापति भाग चलता है। खड्ग सिंह पीछा कर लेता है और अन्त में गोली मार देता है। इधर मोहन अकेले में )

मोहन-ड्रामा-या भगवान ! क्या बात है जो अभी तक पिताजी रुपया नहीं भेज सके ! अब मैं यहाँ किसके सहारे रहूँ। अब मुझे घर चलकर पता लगाना चाहिये। 

मोहन चला जा रहा था, रास्ते में सेनापति घायल हालत में )

सेनापति-ड्रामा-हाय राम ! हाय राम !! हाय राम !! ! मोहन-ड्रामा-या परमात्मा ! ये दर्द भरी आवाज किधर से आ रही है। ( अटकते हुये ) मुझे ऐसा लगता है कि

ये आवाज उस पहाड़ी की तरफ से आ रही है। ( मोहन चला जा रहा था, रास्ते में सेनापति को देखकर )

मोहन (सेनापति से लिपटकर )
ब0त0-हाय प्यारे पिता आपको क्या हुआ, खून से आप क्यों हैं नहाये हुये। हो गई सुर्ख सारी यहाँ की जमीं, दिल में ढाँढस नहीं बिन बताये हुये।। बोलो बोलो जरा मुख से बोलो पिता, .मेरे दिल में जरा भी नहीं धीर है। कौन पापी किया आपकी यह दशा, नाम बतलाओ जो साला बलबीर है ।।

सेनापति
दोहा-जरा ध्यान देकर सुनो, मोहन मेरे लाल। खड्ग सिंह शैतान ने किया मेरा यह हाल ।। 

ब0त0-मेरे नूरे नजर मेरे प्यारे पिसर, अन्त में बस यही है बताना तुम्हें । मैं सगा बाप तेरा नहीं हूँ मगर, पालकर कर दिया है सयाना तुम्हें ।। इतना मैं जानता हूँ तू दो भ्रात हो, तेरी माता सगी जिन्दा संसार में मर गये जबसे बेटा तुम्हारे पिता, राज्य में मन्त्री का तबसे अधिकार है।।

कवि
(सेनापति कुछ और बताना चाहते हैं तभी साँस जाती है। मोहन रोते हुये लाश लेकर चल देता है। 

मोहन 
क०-नाहीं लागइ मोर ठिकनवाँ।। ई जमनवाँ बैरी ना। मदन मुरारी हमरे ऊपर रहम न तनिकउ खायन ।। बनि के पूर बेदर्दी विधना कइसन गाज गिरायन । पानी बरसइ मोर नयनवा ।। ई जमनवाँ ० ।। जो थे अपने जुदा हो गये कोई नहीं सहारा। दुख सागर में नइया भटके सूझे नहीं किनारा ।। धारा होइ गइले जहनवाँ ।। ई जमनवाँ 0 ।। हाय रे किस्मत कैसी निकली क्या २ दिन दिखलाया।

जो था मैंने कभी न सोचा वही सामने आया। होइगा बाबुल बिन ललनवाँ || ई जमनवाँ ।। आज तलक मैं कभी न देखा था ऐसा इन्सान। जो कि पराये बेटे खातिर गवाँ दिया है प्रान।। 'रामलोचन' भये सपनवाँ ।। ई जमनवाँ ० ।। 

( इधर खड्ग सिंह राज्य दरबार में )

खड्ग सिंह-ड्रामा-आह ! आज कितनी खुशी का दिन है, हमारे तीनों शत्रु मारे गये आज मैं चैन की नींद सोऊँगा।

( खड्ग सिंह सो रहा है अचानक जाग जाता हैं ) खड्ग सिंह-ड्रामा-या भगवान ! आज क्या होने वाला है. कितना अचम्भा ! कितना भयानक स्वप्न है।
( मन्सा का आना और खड्ग सिंह से कहना )

मन्सा
कौ०-पिताजी क्या बात है आज क्यों उदास बैठे हो । झुकाये शीश नीचे को बहुत निराश बैठे हो।। नहीं क्यों सो रहे बाबुल अभी तो रात काफी है। लिये इतनी समय से क्यों गमों की साँस बैठे हो ।।

खड्ग सिंह
कौ०-बताऊँ क्या तुझे बेटी कि क्यों उदास बैठा हूँ। खड्ग सिंह भयंकर ख्वाब देखा है वही निराश बैठा हूँ।। कलेजा कॉप जाता जबकि आती याद ख्वाबों की। इसी से मन्सा लेकर के गमों की साँस बैठा हूँ।।

मन्सा
कौ०-पिताजी साफ बतलाओ सपन क्या रात देखा है। धड़कता जा रहा दिल आपका क्या बात देखा है।।

खड्ग सिंह
कौ०-सुनो मन्सा धड़कता जा रहा क्यों दिल हमारा है। मुझे गोली से मेरे अरि का बेटा आज मारा है।। मन्सा-ड्रामा-पिताजी ! आप नाहक में अफसोस कर बैठे हैं, स्वप्न झूठे होते हैं।

खड्ग सिंह-ड्रामा-बेटी ! आज तक मैंने जो भी ख्वाब देखा है, वह सच हुआ और यह ख्वाब भी सच होगा।

मन्सा
ब0त0-जब यही बात है मेरे प्यारे पिता, कौन दुश्मन तुम्हारा बताओ मुझे। उसके बेटे का क्या नाम कैसा है वो, सब बताओ मुझे सब बताओ मुझे ।।


खड्ग सिंह
ब०त०-सेनापति मेरा दुश्मन पुराना जो था, उसकी हत्या हुई कल मेरे हाथ है। उसका बेटा चुकायेगा बदला कभी, इसलिये मेरा चकरा रहा माथ है ।।

मन्सा
ब० त०-आप बेखौफ रहिये पिताजी मेरे, गर्चे जिन्दा रहूँगी मैं संसार में। आप का बाल बाँका जो कर दे कोई, इतनी जुर्रत कहाँ नीच मक्कार में ।।

खड्ग सिंह
ब०त० मानता हूँ मैं बेटी तेरी बात को, किन्तु मोहन तो माई का लाल है। अपने प्रण पर वह कुर्बान हो जायेगा, ऐसा खूँख्वार मोहन मेरा काल है।।

मन्सा
ब0त0-इतनी शंका अगर आपको है पिता, जो करूँ कौल उसको निभाऊँगी मैं। कल सुबह शाम तक मैं पिताजी सुनो, खून कर लाश मोहन की लाऊँगी मैं ।।

खड्ग सिंह
ब० त०-बेटी कल लाश मोहन की लाओगी तुम, छोड़ कर बेटी बेटा कहूँगा तुम्हें । तेरी जुर्रत का गुनगान गाऊँगा मैं, अपनी जाँ से भी ज्यादा चाहूँगा तुम्हें ।।
मन्सा-ड्रामा- ठीक है पिताजी ! आप सो जाइये, कल मोहन की लाश जरूर मिलेगी।

कवि
दोहा-खड्ग सिंह सोने लगा, हुआ है यारों प्रात। ले पिस्टल मन्सा चली, पूरी करने बात।। मन्सा को उस राह में, डाकू मिले दो चार।

मेन डाकू का नाम था, सोहन सिंह सरदार ।।

सोहन सिंह
ब० त०-गुलबदन गुलहसीं राजमणि शशिमुखी, तू परी है कि हुस्ने चमन की झरी । सुन्दरी कर कृपा यह बताओ मुझे, जा रही हो कहाँ पर अरे मनहरी ।।

मन्सा
ब0त0-आपसे क्या बताऊँ कहाँ जा रही, आपका क्या जरूरी पड़ा काम है। आपने रोक ली क्यों हमारी डगर, बोलो क्या काम है बोलो क्या काम है ।।

सोहन सिंह
गजल-नहीं आपसे काम कोई हमारा।
मेरी माहे पारा मेरी माहे पारा!! शैर-जब से देखा है तुम्हें ये दिल दिवाना हो गया। तू शमा जलती हुई और मैं परवाना हो गया।।

मन्सा
गजल-मुझे बेशरम ये न नगमा सुनाओ। मेरी राह छोड़ो कहा मान जाओ।।

शैर-ऐ हरामी नीच पापी आ जरा तू होश में। इस तरह पागल बनो ना यूँ जवानी जोश में || मुझे ऐसी वैसी अजी न बनाओ || मेरी ।। 

सोहन सिंह
शैर-आज सोहन सिंह के कब्जे से तू न जा पायेगी। जाम उल्फत का पिला के दिल मेरा बहलायेगी ।। तेरे चाँद चेहरे का मैं हूँ सितारा || मेरी || .

मन्सा (पिस्तौल दिखाते हुये )

शैर-सीधे सीधे अब यहाँ से नीच पापी जा चला। दाग दूँ गोली से वर्ना आज मैं तेरा गला ।। जरा होश में थोड़ा अइयास आओ ।। मेरी० ।।


सोहन सिंह
शैर-गोली चला दो शौक से देखो मगर तुम प्यार से। मैं तो खुद मर जाऊँगा तीरे नजर के वार से ।। करो लाल प्यारी न आँखों का पारा ।। मेरी० ।। ( सोहन सिंह मन्सा का आँचल पकड़ लेता है, मन्सा उत्तेजित होकर )

मन्सा-ड्रामा-हत्यारे ! मैं बार-बार तुमसे कहती हूँ कि मेरा आँचल छोड़ दे।

सोहन सिंह-ड्रामा-रानी ! बिना अरमान पूरा किये आँचल कहाँ छोड़ सकता हूँ।

( मन्सा सोहन सिंह को गोली मारना चाहती है, सोहन सिंह चकमा देकर कलाई पर घूंसा मारता है, पिस्टल दूर गिर जाती है। कलाई कड़ कर 


सोहन सिंह
क०ब०त० खैरियत अपनी चाहो मेरी जानेमन | मुस्करा के गले से लगाओ मुझे ।। इस तरह रूठ जाना नहीं ठीक है। प्यार में गुलहसीं न सताओ मुझे ।।

मन्सा
क०ब०त० - इस तरह से न पापी दिवाना बनो। मैं शमा हूँ तू परवाना जल जायेगा।। जाम उल्फत का कभी भी न पी पायेगा। आपसे आप पैमाना ढल जायेगा।। 

सोहन सिंह
दोहा-सीधे सीधे गर नहीं, करोगी मुझसे प्यार। जबरन तेरे साथ मैं, लूटूँ मौज बहार।। 

ड्रामा-बुलाओ जिसे बुलाना चाहती हो। कौन कृष्ण है, कौन अर्जुन है जो तेरे इमदाद में आता है।

( मन्सा रोते हुए )

क०- -लजिया राधा के सजनवाँ अब बचाई लेत्या ना। सोहन सिंह मोरे पड़ा बा बैरे लूटइ लाज हमारी।। रोइ रोइ अब तुम्हें पुकारे ई मन्सा दुखियारी। फेरा दया के नयनवाँ ।। अब बचाई || द्रुपद सुता की खींच रहा था जब दुः शासन सारी। सभा में आकर चीर बढ़ाया नटनागर बनवारी।। यशुदा माई के ललनवाँ ।। अब बचाई 0 ।। टेर रही हूँ कब से लोचन जरा दया न आई। दास 'त्रिफला' पैर पकड़ि के तोहके रहे मनाई ।। माना 'सन्ते' के कहनवाँ।। अब बचाई।।।

सोहन सिंह टूट पड़ता है मन्सा चिल्लाती है ) मन्सा-ड्रामा-बचाओ ! बचाओ !! बचाओ !!!

कवि
दो०-उसी समय मोहन वहीं, पहुँच गया है यार । यह अइयासी देखकर, हुआ लाल अंगार।। चौ०-हुआ लाल अंगार जरा भी रहम नहीं है खाया। सोहन सिंह को मार मारकर सारा नशा बुझाया ।। मन्सा ने भी उसी वक्त सुन्दर है मौका पाया। गुस्से में सोहन सिंह के सर चप्पल चार लगाया।। दौ० - सोहन सिंह गुर्राया, जब होश में थोड़ा आय आँखें लाल दिखाया।

भाग चला तब वहाँ से उठकर ये है बैन सुनाया।। सोहन सिंह-ड्रामा- अगर मैं जिन्दा रह जाऊँगा तो इसका बदला चुकाकर तब छोडूंगा।

( सोहन सिंह भाग जाता है मन्सा पिस्टल उठाकर मोहन से )

कौ० नहीं भूलूँगी यह एहसान सुबहो शाम परदेशी। यहाँ पर आ गये बनकर मेरे घनश्याम परदेशी ।। बचाया लाज मेरी आपने चण्डाल पापी से। जवानी दे रही हूँ आपको ईनाम परदेशी।। मोहन

मन्सा
कौ०-नहीं हूँ स्मरण काबिल मैं सुबहो शाम देवी जी। मुझे कहके न शर्मिन्दा करो घनश्याम देवी जी ।। मुझे अब देर होती है मैं अपने घर को जाता हूँ। जवानी का मुझे न चाहिये ईनाम देवी जी ।।

कौ०-कलेजे पे कटारी मार के जाओ न परदेशी।जवानी का ये तोहफा आज ठुकराओ न परदेशी ।।मुझे इस चाँद चेहरे की बना लो चाँदनी सइयाँ । यहाँ इस हाल में यूँ छोड़के जाओ न परदेशी ।।

मोहन-ड्रामा-अच्छा, ये बताओ तुम्हारा नाम क्या है ? मन्सा-ड्रामा-वैसे तो लोग मुझे मन्सा कहते हैं और मैं महाराज श्री खड्ग सिंह की बेटी हूँ।

( मोहन मन ही मन में )
मोहन-ड्रामा-या भगवान ! ये तो मेरे दुश्मन की लड़की है। मैं इसके साथ क्या व्योहार करूँ। खैर कोई बात नहीं है। मैं इसका अरमान पूरा करूँगा।

( मोहन मन्सो से - गाना तर्ज - झिलमिल सितारों का आँगन हम तुम जमाने में आते रहेंगे। प्यार का नगमा सुनाते रहेंगे।।

(मन्सा मोहन साथ में )

हम तुम जमाने में आते रहेंगे। प्यार का नगमा सुनाते रहेंगे।। तेरे मेरे जनम के नाते रहेंगे ।। प्यार० ।।

मोहन
प्यार की जो डोर है उसको कभी न तोड़ेंगे। साथ नहीं छोड़ेंगे हम साथ नहीं छोड़ेंगे।। दोनों आँखों से दिल में समाते रहेंगे।। प्यार० ।।

दुनियाँ में मैं आई हूँ तो प्यार करती जाऊँगी। हर जनम में मिलने का इकरार करती जाऊँगी।। दोनों रस्में वफा की निभाते रहेंगे ।। प्यार० ।।

मोहन
तुमको अपनी बाँहों में ले दुनियाँ एक बसाऊँगा। गले से लगाऊँगा मैं गले से लगाऊँगा।।

दोनों-दुख सुख में ये गीत गाते रहेंगे।। प्यार ||

मन्सा साये के सहारे सँइयाँ हरदम मैं चलूँगी। साथ ही जियूँगी प्यारे साथ ही मरूँगी ।। दोनों एक दूजे का दिल आजमाते रहेंगे।। प्यार ।। मोहन

दुनिया रूठे रूठे चाहे सारा ये जमाना।

जुदा हम कभी न होंगे वादा है निभाना ।। दोनों-हम तुम सदा मुस्कराते रहेंगे ।। प्यार ।।

मन्सा

मुझे 'रामलोचन' देखो कभी न भुलाना। पास ही रहना प्यारे दूर नहीं जाना।। दोनों-सदा 'त्रिफला' याद आते रहेंगे ।। प्यार० ।।

मन्सा-ड्रामा- मुझे छोड़ दो परदेशी। अभी मुझे बहुत दूर जाना है।

मोहन-ड्रामा-आखिर कहाँ जाओगी ? मन्सा-ड्रामा-ऐसे नहीं बताऊँगी।

मन्सा-ड्रामा-तब कैसे बताओगी ?

दो0-वचन मुझे यह दीजिये, कहूँ जोड़कर हाथ । जहाँ चलूँगी मैं वहाँ, आप चलेंगे साथ।।

ग० करूँगी जो अच्छा बुरा प्राण प्यारे। रहूँगी हमेशा तुम्हारे सहारे ।। 

मोहन
ग०-करोगी क्या अच्छा बुरा प्राण प्यारी । बताओ मदद मैं करूँगा तुम्हारी ।।

मन्सा-ड्रामा-परदेशी ! मेरे पिता का एक बहुत बड़ा दुश्मन है जिसका नाम मोहन है। आज उस मोहन को गोली से मारकर उसकी लाश अपने पिता के सामने पेश करूँगी। आप साथ देंगे न ?

मोहन-ड्रामा मन्सा ! मोहन बहुत सीधा है। तुम बड़ी बेदर्द हो जो उसे गोली से मारोगी।

मन्सा-ड्रामा-सीधा होगा अपने घर के लिए, हमारे लिए नहीं। वो तो मेरा दुश्मन है। परदेशी उसे जल्द ढूँढ़वाइये। मोहन मन्सा के साथ नाटक रच रहा था )

मोहन ड्रामा मन्सा ! मेरी परछाई बहुत खराब है। मैं तुम्हारे साथ रहूँगा तो मोहन कभी नहीं मिल पायेगा, चाहे जिन्दगी भर ढूँढ़ती रह जाओ।

मन्सा-ड्रामा दोस्त ! तुम देख रहे हो लेकिन बता नहीं रहे। मोहन-ड्रामा जब यही बात है तो सही करो अपनी पिस्टल। हो।

जब दिखलाऊँगा तभी गोली चलाना। मन्सा खूब तैयार हो जाती है 

मोहन सामने खड़ा होकर )
ग०-जरा सा नहीं मन्सा देरी लगाओ। मेरा नाम मोहन है गोली चलाओ ।।

( मन्सा मोहन का नाम सुनते ही मोहन के सीने पर पिस्टल तान देती है दोनों की नजरें एक होती हैं, पिस्टल हाथ से छूट जाती है, मोहन पिस्टल उठाकर ) 
मोहन-ड्रामा- तुम्हें क्या हो गया मन्सा, तुमने मेरा खून क्यों नहीं किया ? ( मन्सा कुछ नहीं बोलती है ), मैं समझ गया तू तरस खा गई। अगर मोहन के जीने से दुनिया को एतराज है, तो मोहन ये दुनिया छोड़कर चला जा सकता है।

( मोहन अपने आपको गोली मारना चाहता है तभी मन्सा लपकते हुये ) मन्सा-ड्रामा-हाय राम, मोहन ! ये क्या करने जा रहे हो ? 
तुम कभी नहीं मरोगे।


मन्सा घर जाती है खड्ग सिंह दरबार में होता है। खड्ग सिंह-ड्रामा-बेटी मन्सा, जहाँ गई थी क्या हुआ ? मन्सा-ड्रामा-पिताजी ! उसे बहुत ढूँढा, परन्तु उसका कहीं

पता नहीं लगा।

खड्ग सिंह-ड्रामा-बेटी ! साला ऐसे नहीं मिल सकता है। उसको मारना कोई आसान काम नहीं है। जाओ तुम आराम करो मैं कुछ उपाय सोचूँगा।

( सीन बनाइये-रजनी गुजारा के लिए टोकरी में खिलौना लेकर बेचने जा रही है। इधर खड्ग सिंह की बड़ी बेटी स्कूल जा रही है जिसका नाम गीता है। 
रजनी को गीता धक्का मार देती है रजनी गिर पड़ती है और सारे खिलौने फूट जाते हैं। )

गीता
ब०त०-क्यों रे बुढ़िया तुझे होश है या नहीं, या कि तुझको है देता दिखाई नहीं। मारती धक्का चलती अगल व बगल, चिल्लाने पर भी है देता सुनाई नहीं ।। 

रजनी
ब0त0-मार कर धक्का बनती हो भोली बड़ी, और मुझको बिगड़ती चली जा रही। धन्य है धन्य कैसा जमाना है ये, कितना मुझपे ये लड़की सितम ढा रही ।।

गीता ( थप्पड़ उठाते हुये )
ब०त०-बस खबरदार बुढ़िया जुबाँ रोक ले, वरना मीजाज कर दूँ ठिकाने तेरी। मारकर धक्का बनती है निर्दोष तू, ये हरगिज नहीं बात माने मेरी ।।

"( गीता रजनी को ज्यों ही मारना चाहती है त्यों ही पीछे से डाकू सोहन सिंह हाथ पकड़ लेता है। सोहन सिंह-ड्रामा- क्यों बुड्ढी ! क्या बात है ?

रंजनी (रोते हुये ) 
कौ०-ये लड़की मारकर धक्का मुझे आँखें दिखाती है। खिलौना फोड़कर मेरा मुझे दोषी बनाती है।।
मेरे बेटा कहूँ क्या मैं जमाने की है बलिहारी। 'मैं अपने दुख से रोती हूँ मगर ये मुस्कराती है।। जवानी के नशे में चूर हो सब कुछ ये भूली है। जरा देखो जरा देखो न ये बिल्कुल लजाती है ।।

सोहन सिंह
ब0त0-बूढ़ी माँ दे रहा यह ले सौ रूपये, जा खिलौना अभी ले लो बाजार में माफ कर दो खता इसकी जो कुछ भी हो, कुछ नतीजा न निकलेगा तकरार में ||

रजनी सौ रुपये लेकर चली जाती है। 

सोहन सिंह गीता से
सोहन सिंह-ड्रामा-क्यों मेम साहब, आपका यही धर्म है ? गीता-ड्रामा ( शर्म से मुस्कराते हुये ) गलती हो गई। मैं आज तक यही सोचती थी कि डाकू बड़े निर्दयी होते हैं, परन्तु आज अपनी आँखों से पहली बार देख रही हूँ कि डाकू बड़े दयावान होते हैं।

सोहन सिंह ड्रामा-गीता ! जो सच्चा होता है सचमुच दयावान होता है।

गीता-ड्रामा-डाकू मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। 'सोहन सिंह-ड्रामा-तू अपनी शादी किसी डाकू से ही करना, अच्छा चल रहा हूँ। नमस्कार !

गीता
गजल-जाने वाले जरा रुक के जाना। अपने दिल में मुझे दो ठिकाना।। छोड़ दो दूर से मुस्कराना। आके सीखो गले से लगाना।।

सोहन सिंह
गजल-आ दिखा दूँ गले से लगाना। जानेमन मैं हूँ तेरा दिवाना।। छोड़ दो इस कदर से लजाना। वस्ल का जाम प्यारी पिलाना।।

गीता
गजल-जोर करती है राजा जवानी। मैं बनी हूँ तुम्हारी दिवानी ।। आज करना न कोई बहाना। देखो कितना है मौसम सुहाना ।।

सोहन सिंह
गजल-तू रसीली कली मैं मधुप हूँ। कुछ समझ सोचकर किन्तु चुप हूँ ।। क्या कहे 'त्रिफला' फिर ये जमाना।

होगा जब तेरे घर आना जाना ।। सोहन सिंह-ड्रामा-चलो गीता ! घर चला जाय, काफी देर हो गई है।

गीता-ड्रामा- सोहन सिंह जावो, मगर भूल न जाना, नमस्कार । (गीता भी अपने घर चली जाती है। इधर खड्ग सिंह डाकू सोहन सिंह के पास जाता है ) 

सोहन सिंह
कौ०-खड्ग सिंह आज मेरे पास कैसे आये हो। कष्ट कैसे यहाँ तक दोस्तमन उठाये हो।।

खड्ग सिंह
कौ०-आपसे पड़ गया एक काम जरूरी मेरा। यही कारण है जो हमने लगाया फेरा।।

सोहन सिंह
ब0त0-आपका काम क्या है बताओ मुझे, आपका काम करने को तइयार हूँ। कर दो इजहार जो कुछ है दिल दरमियाँ, आपकी बात से मैं न इनकार 

खड्ग सिंह
ब०त०-आप से बस यही आरजू दोस्तमन, गरचे मोहन को जिन्दा पकड़ लाओगे। जितना रुपया कहो उतना दे दूँगा मैं, ये हमारा अगर काम कर आओगे।।

सोहन सिंह
ब०त०-आप बेखौफ रहिये मेरे दोस्तमन, उसको जिन्दा पकड़ करके लाऊँगा मैं। क्योंकि मेरा भी दुश्मन पुराना है। वो, ऐसे मौके पे बदला चुकाऊँगा मैं ।। रूपयों की जरूरत नहीं है मुझे, आपसे बस हमारी यही शर्त है। गीता की शादी कर दो मेरे साथ में, बस यही शर्त है बस यही शर्त है ।।

खड्ग सिंह

ब०त०-आपकी शर्त मुझको भी मंजूर है, जिन्दा मोहन को जिस दिन पकड़ लाओगे। कहता हूँ खाके सौगन्ध भगवान की, बस उस दिन मेरी गीता पा जाओगे।।

( खड्ग सिंह चला जाता है दरबार में, अपनी बड़ी बेटी गीता को. बुलवाता है। गीता आती है ) 

खड्ग सिंह
*दो०- बेटी भारी खता हुई है मुझसे आज। अब तेरे ही हाथ में बेटी मेरी लाज ।।

गीता

दो०-पिताजी बोलो आपसे, खता हुई क्या आज। कैसे मेरे हाथ में पिता तुम्हारी लाज || खड्ग सिंह-ड्रामा-बेटी ! मैं एक डाकू से बाजी हार गया हूँ कि अगर वह मोहन को जिन्दा मेरे हाथ सौंप देगा तो तुम्हारी शादी उसी के साथ कर दूँगा।

गीता

ब0त0-मेरे प्यारे पिता आपने क्या कहा, बाजी किस डाकू से तुम गये हार हो। नाम क्या है कहाँ का निवासी है वो, साथ में जिसके बेड़ा मेरा पार हो । । 
मन्सा छिप कर सुन रही है ) 

खड्ग सिंह
ब0त0 डाकू सोहन से बाजी गया हार हूँ, जो कि विख्यात है पूरे संसार में। 


गीता ( खुशी से )
ब०त०-आपकी गलती कोई नहीं है पिता, डाकू ही लिखा था मेरे लीलार में ।।

( सीन बनाइये-रजनी खिलौना लेकर बेचने जा रही है, मोहन को देखकर ) रजनी-ड्रामा-बेटा मोहन ! जरा यहाँ आओ।

मोहन-ड्रामा-( पास जाकर ) क्या है ?

रजनी

ब0त0-मेरे बेटा सुनो मेरी पुकार को, सर का झाबा हमारे उतारो जरा। मेरी गर्दन टूटी जा रही बोझ से, कर कृपा मोहन ( झाबा उतार कर )
मुझको दे दो यही आसरा ।।

ब0त0-बुढ़िया माँ कर कृपा यह बताओ मुझे, बेचने यह खिलौना कहाँ जावोगी। दूर कितना है पड़ता यहाँ से अभी, तुम जहाँ जावोगी तुम जहाँ जावोगी ।। 
रजनी-ड्रामा-बेटा ! यहाँ से करीब दो मील दूरी पर एक बाजार लगता है वहीं जा रही हूँ। मोहन-ड्रामा-माँ ! उसी तरफ मैं भी चल रहा हूँ, लाओ कुछ दूर तक लेता चलूँ।

रजनी-ड्रामा रहने दो बेटा ! ये मेरा रोज का काम है। ( मोहन नहीं मानता है। टोकरी उठाकर चल देता है। बाजार पहुँचकर टोकरी उतार देता है )


रजनी
कौ०-कभी भूलूँगी न एहसान तुम्हारा बेटा। दिया है आज बुढ़ापे में सहारा बेटा ।। जुग जुग जीते रहो आशीष हमारा बेटा। हमेशा चमके तेरा भाग्य सितारा बेटा ।।

मोहन
कौ०-इसमें ऐहसान बूढ़ी माँ न कुछ हमारा है। यही तो सभी इन्सान को गवारा है।। बताओ इस उमर में क्यों तुम इतना गम उठाती हो।
इस दुनियाँ में क्या कोई नहीं तुम्हारा है।। ( इतना सुनकर रजनी रोने लगती है ) 

मोहन
ब0त0-क्यों माँ क्या हो गया कुछ बताओ मुझे, आँखों से कैसे आँसू हैं छलका रही। फूटकर रो रही हो अजी बात क्या, राजेदिल दर हकीकत न बतला रही।।

रजनी

ब0त0-मेरे नूरे नजर क्या कहा आपने, बाद मुद्दत की तुम याद करवाये हो । आज तक जो भुलाये भटकती हूँ मैं, बस वही बात कह करके रुलवाये हो।। मोहन-ड्रामा-आखिर क्या बात है जो रो रही हो ?

रजनी-ड्रामा-बेटा ! तुम पूछ रहे हो कि इतनी मुसीबत मैं क्यों उठा रही हूँ, क्या हमारे कोई नहीं है, तो सुनो बेटा ! 

मैं राजा कंचन सिंह की पत्नी हूँ। मेरे स्वामी मर गये हैं बेटा ! मेरे दो बच्चे थे। मन्त्री खड्ग सिंह ने राज्य की लालच में आकर मेरे दोनों बेटों को मारकर गायब कर दिया। मैंने जब खड्ग सिंह से

अपने बेटों के बारे में पूछा तो मुझे भी पैर से धक्का मारकर महल से निकाल दिया। तभी से आज बाइस साल का दिन बीत गया, मैं इसी तरह से जी रही हूँ।

( मोहन सेनापति की बात याद करता है. ... बेटा! मैं तुम्हारा सगा पिता नहीं हूँ। तुम दो भाई हो, तुम्हारी माँ जिन्दा हैं। तुम्हारे पिता मर गये हैं। या भगवान! ये सब क्या हो रहा है )

मोहन-ड्रामा-( रजनी से ) माँ ! तुम्हारा बेटा तुम्हारे सामने आ जाये तो पहचान सकती हो ? रजनी-ड्रामा-बेटा ! क्यों नहीं पहचान सकती हूँ ? मेरे

दोनों बेटों की दाहिनी हथेली पर चक्र का निशान है।

( मोहन दाहिनी हथेली देखता है, तभी रजनी चक्र का निशान देख लेती है और हाथ पकड़ लेती है )

रजनी
  कौ०-मेरे बेटे मेरी आँखों के तुम्हीं तारे हो।
भँवर में डूबती कश्ती के तुम किनारे हो।। तुम्हीं सब कुछ मेरे गुलशन के गुलहजारे हो । भटकती जिन्दगी के तुम्हीं एक सहारे हो ।। 

मोहन
कौ0-मेरी माँ जिन्दगी में कैसा लगा मेला है। दिखाने वाला मुझे क्या दिखाया खेला है।। मेरे जीते जी तुमने क्या मुसीबत झेला है।
हाय भगवान कैसा गजब का झमेला है।। 

( मोहन रजनी को साथ लिवाकर घर आता है। रात हो जाती है, मोहन और रजनी सोने लगते हैं, एकाएक मोहन चौंककर उठ जाता है )

मोहन-ड्रामा-या भगवान ! मुझे क्या हो गया है जो मुझे मन्सा की बार-बार याद आ रही है।

( सीन बनाइये-मोहन मन्सा की यादगारी में शीश झुकाये बैठा हैं। उसी

समय मन्सा आती है, मोहन मन्सा को देखकर )


मोहन
दोहा0-मन्सा बोलो आज क्यों, इतनी हो गमगीन। किसने आनन चाँद से लिया चाँदनी छीन।। कौ०- बताओ किस लिये नैनों से नीर जारी है। तुम्हें यूँ देख दिल में मेरे बेकरारी है ।। हाय मन्सा तुम इतनी रात में क्यों आई हो। मेरी रानी बता तुमको कसम हमारी है ।।

मन्सा

दोहा0-मोहन मेरी आपकी, फूट गई तकदीर । टूटेगी दो दिल बँधी, उल्फत की जंजीर ।। कौ०-हमारे बाप ने एक जुल्म किया भारी है। इसी से आपकी मन्सा बहुत दुखारी है ।। बताते काँपता दिल जुबाँ लड़खड़ाती है। मेरे दिलदार इतना गम का बोझ भारी है ।।

मोहन-ड्रामा-आखिर बात क्या है जो रो रही हो ? तुम्हारे पिता ने क्या जुल्म ढा दिया है ?

मन्सा-ड्रामा-मेरे पिता ने डाकू सोहन सिंह से यह बात पक्की कर ली है कि वह अगर आपको जिन्दा हमारे पिता के हाथ सौंप देगा तो पिता जी मेरी बड़ी बहन गीता की शादी सोहन सिंह के साथ कर देंगे और आज का वादा है आपको पकड़ने के लिये।

मोहन

ब०त०-धत् तेरे की बस इतने से घबरा गयी, और आँखों से आँसू बहाने लगी। मेरी जुर्रत तुम्हें क्या है मालूम नहीं, मुफ्त में गम के सदमें उठाने लगी।। 

जब तलक है
रिवाल्वर मेरे हाथ में, बाल बाँका नहीं कोई कर पायेगा। एक निर्दोष को जो सताया अगर, खुद ब खुद मौत से अपनी मर जायेगा। कितना मदमस्त मौसम ये रंगीन है, दिल मचलने लगा चाँदनी रात में। मुस्कराओ गले से लगाओ मुझे, रात कट जाने दो बात की बात में ।।

मन्सा
गाना-नरमी कलइया मरोड़ दिया संइया, बलम तू बड़े निरदइया || बलम तँ० ।। कोरी रे चुंदरिया में दाग न लगावा। आधी २ रतिया में पिया न सतावा।। हाथ जोडू बार बार पहूँ तोहरे पइयाँ ।। बलम नूँ ।। बनो निर्मोहिया न बारी बा उमरिया। बल खाइ जइहीं मोरी पतली कमरिया।। बलम तँ ० ।।

मोहन-ड्रामा-मन्सा ! रात काफी हो चुकी है मुझे नींद लग रही है। मेरा दिल कहता है कि तुम भी घर चली जाओ।

मन्सा-ड्रामा-मोहन ! आज की रात मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जाऊँगी।

बात करते करते मोहन सो जाता है। मन्सा भी बगल में लेटकर सोने . लगती है, रजनी का आना ) 
रजनी-ड्रामा-या भगवान ! ये लड़की कौन है ? कितनी
सुन्दर लगती है। भगवान करे दोनों की जोड़ी हमेशा सलामत रहे।

कवि

दोहा-मोहन की सोहन इधर, करने लगा तलाश। इधर ये दोनों सो रहे, ले खर्राटे साँस ।।


( सीन बनाइये-डाकू सोहन सिंह वहाँ पहुँचता है जहाँ ये दोनों सो रहे हैं। चादर उठाकर देखता है तो कोड़े से मारना चाहता है। कुछ सोच समझ कर मोहन की तलाशी लेकर पैन्ट की जेब से पिस्तौल निकाल लेता है तब मोहन को एक कोड़ा मारता है। मोहन मन्सा चौंककर उठ जाते हैं, मोहन जेब में हाथ डालते। हुये ) मोहन-ड्रामा बस खबरदार सोहन !

सोहन सिंह-ड्रामा-( पिस्तौल दिखाते हुये ) अबे जेब में क्या देखता है, इधर देख।

कौ०-अगर चाहते हो तुम अपनी भलाई।
अभी हाथ दोनों लो ऊपर उठाई ।। बना दूँगा गोली का वर्ना निशाना। तुम्हें कर दूँ मुल्के अदम को रवाना ।।

मन्सा
कौ०-पहूँ पाँव सोहन रहम थोड़ा खाओ। अभागिन पे देखो सितम यूँ न ढाओ ।। यहीं छोड़ दो मेरे मोहन को सोहन । मुझे ले चलो बल्कि फाँसी कराओ।।

सोहन सिंह ड्रामा-मैं कुछ नहीं सुनना चाहता हूँ, यह वही मोहन है जिसने मेरे साथ अन्याय किया है, मुझे आँखें दिखाया है।

( सोहन सिंह मन्सा व मोहन को गिरफ्तार करके खड्ग सिंह के पास जाता है )

सोहन सिंह-ड्रामा-महाराज खड्ग सिंह की जय हो। यह लीजिये अपने दोनों शिकार को।

खड्ग सिंह ( मन्सा को देखकर )

कौ०-अजी बात क्या है ये कैसी घड़ी है। लगी मन्सा के कर में क्यों हथकड़ी है।।
जरा दर हकीकत करो पेश सोहन ।
बेचारी यहाँ रोती ये क्यों खड़ी है ।।

सोहन सिंह
कौ0 नहीं रह गयी अब वो मन्सा तुम्हारी। बनी अब तो मोहन की है प्राण प्यारी ।। दोनों को सोते किया कैद मैंने। तुम्हीं अब बताओ खता क्या हमारी ।।

खड्ग सिंह
( गुस्से में ) ब0त0-क्यों रे पापिनी तुझे लाज आई नहीं, मेरी इज्जत पे धब्बा लगाते हुये। धर्म की तुमको कुछ भी रही न ख़बर, मेरे दुश्मन को दिल में बसाते हुये।। मेरे घर से निकल जा अभी बेहया, तेरा अरमान मिट्टी में मिलवाऊँगा। साढ़े बारह बजे दिन में कल पापिनी, मौत का झूला मोहन को झुलवाऊँगा ।।


मन्सा
ब0त0-मेरे प्यारे पिता मेरे प्यारे पिता, जुल्म मोहन पे ऐसा ढहाओ नहीं। मेरी फाँसी करो मुझको मन्जूर है, मेरे मोहन को फाँसी कराओ नहीं।।

खड्ग सिंह

ब0त0-हट अलग आँख से दूर हो बेहया, आज से मेरी नजरों में आना नहीं। देखना तेरी सूरत नहीं चाहता, अपनी सूरत मुझे अब दिखाना नहीं।।

( खड्ग सिंह मन्सा को मारकर घर से निकाल देता है। गीता और सोहन सिंह की शादी हो जाती है। गीता को सोहन सिंह अपने घर लाता है। सोहन सिंह गीता के साथ सुहागरात मनाने जाता है। ज्यों ही घूँघट उठाता है उसके कानों में एक दर्द भरी आवाज सुनाई देती हैं।

सोहन सिंह चौंककर )

सोहन-ड्रामा-या भगवान् ! ये आवाज कितनी दर्दनाक है।

गीता
ब0त0-मेरे प्यारे पिया गुलहजारे पिया, आप आश्चर्य में क्यों पड़े जा रहे। आप खामोश बैठे हैं क्या बात है गीता को आप कुछ भी न बतला रहे।।

सोहन सिंह

ब०त०-दर्द गम से भरी इस बियाबान से आ रही मेरे कानों में आवाज है। कर रही है रुदन जैसे दुखिया कोई, ऐसी आवाज है ऐसी आवाज है ।।

गीता

बत०-छोड़ो दुनिया का चक्कर हजारी बलम, हुस्न का लो मजा वस्ल की रात में। कलियाँ बेचैन हैं एक मधुप के लिये, इश्क जाहिर करो मेरे जजबात में ।।

सोहन सिंह

ब०त०-गुलबदन धर्म है ये हमारा नहीं, कोई रोये तो हम मुस्कराते रहें। जाऊँगा मैं लगाऊँगा इसका पता, ये गवाँरा न तफरी उड़ाते रहें ।।

गीता

कौ०-सुहागरात में बालम, मुझे न छोड़कर जाओ। कसम भगवान की दिलवर न दिल को तोड़कर जाओ।।

सोहन सिंह

कौ०-मेरी रानी मुझे जाने दो जल्दी लौट आऊँगा। सुहानी रात में मेंहदी खुदी कर में रचाऊँगा ।। सोहन सिंह चल देता है। 
इधर रजनी रोती हुई )

रजनी

कहरवा-सर पे दिहल बिपतिया कइसन निठुर मुरारी। दुखियारी कउने ओर जाई ना ।। टेक0 ।। कोई सहारा नहीं हमारा किसके द्वारे जाऊँ।
हाय रे किस्मत कैसी निकली ये गम किसे सुनाऊँ।। हमपे तरस न खाया तनिकउ अवध बिहारी ।। दुखि० ।। दुखिया के ऊपर ई दुख की कइसन गाज गिराया। दीन मलीन दुखी मन को ये क्या २ दिन दिखलाया।। सब कुछ छीन छानि के छीन्या ललन हजारी।। दुखि 0 || तोहरे रूठे रूठा बाटइ सारा अहइ जमनवाँ ।। जेकरे ऊपर किहा भरोसा उहइ भवा दुश्मनवाँ।। कहते दास 'त्रिफला' 'सन्ते' की बलिहारी ।। दुखि ० ।। 

( सोहन सिंह रजनी के पास आता है रजनी को रोती देखकर )

सोहन सिंह
कौ०-बहाती हो क्यों बूढ़ी आँखों से पानी । मुझे दर्द गम की सुनाओ कहानी।। तुम्हें देख रोते विकल दिल हमारा। हमारे भी आँखों में आता है पानी ।।

रजनी-ड्रामा- ( गुस्से में ) कौन ? सोहन सिंह तुम हो ! 

कौ०- मेरी आँख से दूर हो जाओ सोहन।
गमे अश्क पे ना तरस खाओ सोहन।। मेरे कौन होते हो जो पूछते हो। चले जाओ दिल को दुखाओ न सोहन।। 

सोहन सिंह
कौ०-मुझे बूढ़ी माँ ये न नगमा सुनाओ। चरण चूमता हूँ सितम यूं न ढाओ।। खता क्या हमारी खफा जो हुई हो। मुझे राजेदिल बूढ़ी माता बताओ।। 

रजनी
कौ0-नहीं तुमको ऐसे मैं जाना था सोहन।
हमीं पे क्या जुल्म ढाना था सोहन।। हमेशा मुझे अपनी माँ कह पुकारा। मेरे संग दगा न कमाना था सोहन ।।

सोहन सिंह
ब0त0-बूढ़ी माँ कुछ समझ में न आता मेरे, क्या दगा साथ तेरे कमाया हूँ मैं। सच में मैं मानता हूँ तुम्हें अपनी माँ, कोई भी न सितम तुझपे ढाया हूँ मैं।

रजनी
ब० त०-गरचे सोहन मुझे अपनी माँ मानते, छीन खुशियाँ मेरा दिल दुखाते नहीं। बेटे मोहन को ना कैद करते कभी, फाँसी का झूला उसको झुलाते नहीं ।।

सोहनसिंह
ब०त०-क्या कहा क्या कहा बूढ़ी माँ क्या कहा, क्या वो मोहन तेरा सच में ही लाल है। माफ कर दो खता मैं गुनहगार हूँ, मुझको मालूम नहीं सारा ये हाल है ।।

ड्रामा-माँ ! अगर मैं जानता कि मोहन तुम्हारा बेटा है तो चाहे मेरा सात जन्म का दुश्मन होता परन्तु मैं कभी भी उसे कैद नहीं करता। खैर

. बoत०-खाके चरणों की सौगन्ध कहता हूँ मैं, मेरी मैया इसी वक्त जाता हूँ मैं। फाँसी मोहन को माँ न कभी होयेगी, साथ अपने छुड़ा करके लाता हूँ मैं ।।

(सोहन सिंह चल देता है। इधर मोहन फाँसी के तख्ते पर खड़ा है। जल्लाद फाँसी करना चाहता है। 

सोहन सिंह
ब० त० बस खबरदार जल्लाद रुक जाइये, मेरा कहना सुनो ध्यान से इस घड़ी। फाँसी मोहन की होनी नहीं चाहिये, खोल दो खोल दो बेड़ी व हथकड़ी।।


खड्ग सिंह
किस तरह बोलते हो अजी बात क्या हो गया क्या है तुम्हें इस घड़ी। कुछ समझ में न आता क्या चाहता, जने को तू कहता है क्यों हथकड़ी ।। तू

सोहन सिंह
ब० त० बाद में आप खुद ही समझ जाओगे, पहले जो मैं कहूँ उसको करवाइये। खैरियत चाहते हो खड्ग सिंह जो, फॉसी का झूला उसको न झुलवाइये ।।

खड्ग सिंह

ब0त0 होश में आओ सोहन न बदहोश हो, अपने वादे से खिलाफ होते हो क्यों। जो किया वादा क्या तुम गये भूल हो, कुछ कहो सच कहो जैसा इन्साफ हो ।।

सोहन सिंह

ब0त0 मैंने वादा किया क्या नहीं जानता, और मुझको नहीं आज कोई खबर साथ मैं अपने मोहन को ले जाऊँगा, है खड्ग सिंह इसमें जरा न कसर ।।

खड्ग सिंह

ब0त0-मैं भी कहता हूँ सोहन खुले आम में, जिन्दा मोहन यहाँ से न जा पायेगा । जिन्दा ले जाने वाले तू आ सामने, ये खड्ग सिंह कुर्बान हो जायेगा।।

( सीन बनाइये-सोहन सिंह खड्ग सिंह के सीने में पिस्टल लगा देता है। खड्ग सिंह बात का चकमा देकर लपक लेता है। 

खड्ग सिंह-ड्रामा ( पिस्टल दिखाते हुये )  सोहन सिंह !

तुम एक डाकू हो, मैं भी किसी डाकू से कम नहीं हूँ। ( खड्ग सिंह सोहन को मारना चाहता है। तभी मोहन सिंह जोश में आकर बेड़ी हथकड़ी तोड़कर खड्ग सिंह के पास पहुँचकर कलाई पर जोर से मारता है। हाथ से पिस्टल छूट जाती है सोहन सिंह मौका पाकर खड्ग सिंह पर टूट पड़ता है। मोहन पिस्टल उठाकर गोली मार देता है। 
सुनते ही रजनी, मन्सा भी आ जाती हैं। सोहन सिंह मोहन की हाथ बढ़ा देता है।
तभी रजनी सोहनसिंह की हथेली में बना चक्र देख लेती है। दोनों बेटों को गले लगाते हुए। )

रजनी
ब0त0-मेरे नूरे नजर मेरे शेरे बबर, मेरे तंग जिन्द, उजाले हो तुम। दोनों भाई मिले और माँ मिल गई, 'र। `लोचन' मेरे बोल बाले हो तुम।। दोनों बेटे मेरे पास आओ जरा, आ लगाऊँ गले से मैं नूरे नजर। गर्दिशों के सितारे चमकने लगे, दो बहू मिल गयी जगमगाता है घर ।। 

कवि
ब0त0-सूखे गुलशन में फिर से बहार आ गयी, जैसे खुश हो खिजाँ से रवानी मिले। पांचों प्राणी खुशी से हिले और मिले, 'त्रिफला' संगीत लिखते हुए हैं मिले।। होनी होकर रहेगी न मिट पायेगी, जो विधाता ने लिक्खा है तकदीर में। 'रामलोचन' से 'सन्ते' दुवा माँगते, करना मुझ पर करम प्रभु आखीर में ||

* समाप्त

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