Nautanki Kitab pooja ke phool भाग-2

नौटंकी   

संगीत पूजा के फूल

 उर्फ  
  विश्वासघात
 
 भाग-2

भाग 2 की आगे  की कहानी 


( सीन बनाइये रानी रेखा को मार कर घर से निकाल रही थी, उसी समय फूल सिंह स्कूल से आ जाता है।)

फूल सिंह 

बoत० रोक लो हाथ माँ अब चलाना नहीं, क्या खता है बहन की बताओ हमें। इस तरह से तू अन्धी को क्यों मारती, खौफ भगवान का भी न आया तुम्हें ।। 

रेखा 

ब०त०-हाय भइया खता कुछ न मैंने किया, माता पानी को भेजा था लेकर घड़ा। रास्ते में मुझे भइया ठोकर लगी, चोट मुझको लगी और फूटा घड़ा।।

फूल सिंह 

बoत०-क्यों चन्डालिन तुझको न आई शरम, मेरी अन्धी बहन को सताते हुये । अब दुबारा अगरचे इसे कुछ कहा, आखिरी बार कहता हूँ जाते हुये ।।

रानी

बoत० फूल सिंह तूने चन्डालिन मुझको कहा, देख कैसा मजा अब चखाती हूँ मैं तेरी करनी का फल तुझको दिलवाऊँगी, जाकर तेरे पिता से बताती हूँ मैं ।।

फूल सिंह 

ब०त० - चाहे जिसके भवन जाके फरियाद कर, तेरी फरियाद कोई सुनेगा नहीं। देके धमकी मुझे क्यों डराने चली, झूठी चुगली से कुछ भी बनेगा नहीं।

रानी

ब०त०-फूल सिंह तू अपमान मेरा किया, एक दिन सारा बदला चुकाऊँगी मैं। तुझको दर-दर भटकना अगर न पड़ा, जाल त्रिया चरित का बिछाऊँगी मैं ।।

( सीन बनाइये रानी राजा के पास जाकर फूल सिंह की शिकायत करती है।। लेकिन महाराज कोई भी शिकवा सुनने से इन्कार करते हैं । )

रानी

ब०त०-बेटा-बेटी बहुत हो गये आपके, और इसमें इज्जत हमारी नहीं। आज समझी की मतलब का संसार है,
गलती मेरी ही है कुछ तुम्हारी नहीं।।

समर सिंह

 बoत०- मैंने माना कि सब सही कह रही, नारियों का ना विश्वास संसार में। अकल से काम जिसने लिया न कभी, डूबती उसकी कश्ती है मझधार में ।।

 ( सीन बनाइये रानी व महाराज में वार्ता चल रही थी उसी समय फूल सिंह व रेखा आ जाते हैं।)

फूल सिंह 

बoत०- माँ की शेखी पिताजी बढ़ी जा रही, देख लीजै बहन की ये क्या हाल है। आपका भी नहीं खौफ खायी पिता, खींच रेखा बहन की लिया खाल है ।।

 समर सिंह

ब०त०- किसलिये तूने बेटी पे ढाया सितम, रेखा से कौन ऐसी हुई है खता। कौन सी बात पर तू खफा हो गई, रेखा की गलती को फौरन मुझसे बता ।।

रेखा

बoत०-कपड़े धोने को माँ मुझको भेजा पिता, पनघट पर जो मुझे आज जाना पड़ा। ठोकर मुझको लगी मैं सम्हल न सकी, गिर पड़ी में पिता और फूटा घड़ा ।।

समर सिंह 
बoत०- हुक्म से किसके बेटी को भेजा वहाँ, कपड़े क्यों
तू नहीं अपने से धो लिया। ऊपर से बेटी पर ढाया जुल्मों सितम, जीते जी क्यों नहीं आँखें तू खो दिया ।।

( सीन बनाइये- समर सिंह गुस्से में रानी को बीसों कोड़े मारते हैं और दुबारा ऐसी गलती ना करने की हिदायत देते हैं। रानी चली जाती है। महाराज अकेले दरबार में बैठे रहते हैं, उसी समय रानी का अपना बेटा कौशल सिंह शराब पीते हुये आता है।) 


समर सिंह
कौ०- कहो क्या यही धर्म कहता तुम्हारा। किसी का हुआ है न इसमें गुजारा ।। ये आदत बुरी है इसे छोड़ दो। नहीं तो फिरोगे सदा मारा-मारा ।।

कौशल सिंह 

कौ०- यही है पिताजी मेरा आबोदाना । भले ही पड़े उम्र भर ठोकर खाना।। यही है मेरे जिन्दगी का सहारा। यहाँ ना मिले तो वहाँ है ठिकाना।।

समर सिंह

ब०त०-बात गरचे नहीं मानोगे कौशल सिंह, अब दुबारा नहीं तुमको सताऊँगा मैं छोड़ दो पीना घर में रहो शौक से, वर्ना ऐसी सजा तुझको दिलवाऊँगा मैं ।। 

कौशल सिंह

ब०त०-धमकियों से पिताजी डराओ नहीं, उम्र भर मैं इसे छोड़ सकता नहीं। जीते जी डूबकर गम में मर जाऊँगा, इससे मैं मुँह कभी मोड़ सकता नहीं।।

समर सिंह
 ब०त०-चल निकल जा हमारे महल से अभी, वरना समझो न हो जान की खैर है। मार कोड़ों से चमड़ी उड़ा दूँगा मैं, तू मेरे वास्ते आज से गैर है ।। 

रानी

ब०त०- बेटा एकलौता है महाराज जी, इस पर इस कदर जुल्म ढाओ नहीं। तख्त और ताज एक दिन बिलट जायेगा, मेरे बेटे को ज्यादा सताओ नहीं ।।

 समर सिंह-वार्ता-इसे ले जाओ मेरे आँख के सामने से वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

रानी-वार्ता-चलो बेटा ! मेरे साथ चलो। ( सीन बनाइये - रानी कौशल सिंह को लेकर कर चली जाती है। उधर सेनापति महाराज के पास आता है।)

समर सिंह 

कौ०- बहुत आज खुशदिल नजर आ रहे हो। बयाँ कीजियेगा कहाँ से आ रहे हो।। मुझे अपनी खुशियों में कर लीजे शामिल। भला किस लिये मीठे स्वर गा रहे हो।।


सेना पत्ती 
कौ०- मैं लाया हूँ पैगाम शादी का राजन गये दूर वो दिन बर्बादी के राजन।। चलो साथ में एक वर देख आओ। खुदी आ गये दिन खुशी के राजन ।।

समर सिंह 
कौ० किया साथ में मेरे अहसान भारी। समर सिंह रहूँ उम्र भर मैं तुम्हारा अभारी ।। जो पैगाम लाये हो किस गाँव का है। हुई मुश्किलें मेरी आसान सारी ।।

सेना पत्ति 
 कौ०- चलो साथ में मेरे वर देख आओ। खुदी लड़के वालों का घर देख आओ।। रतनगढ़ में उनकी खुदी मिलकियत है। उस माहौल को एक नजर देख आओ।।

( सीन बनाइये सेनापति व समर सिंह वर देखने चल देते हैं। रास्ते में सेनापति महाराज को गोली मार देता है। महाराज तड़पते हुये। ) समर सिंह

विलाप-ओह ! दगा-दगा धोखा धोखा,
बतला क्या खता हमारा है। किस खता के बदले में तुमने, मुझको चोरी से मारा है।
कम से कम तू इतना तो बता, क्या इसी के लिये तुझको पाला है। कुल का रक्षक मैं समझा था तुझे,
पर नाग असल में तू काला है।

हो गया आज से जग बैरी, अब कुछ भी कहा न जाता है। करना 'जख्मी' फैसला तुम्हीं,
इस जग से बन्दा जाता है ।।

 ( सीन बनाइये समर सिंह मर जाते हैं, सेनापति हँसते हुये चल देता है, और रानी सेनापति को देखकर।)

रानी

ग० - बिना काम पूरा किये कैसे आये। भला किसलिये अपनी सूरत दिखाये ।। मैं पहले ही तुमको ये बतला दिया था। ये फितरत तुम्हारी समझ में न आये ।।

सेनापति 
ग० - बिना काम पूरा किये कैसे आता । ये जागीर सारी भला कैसे पाता।। मैं राजन को जग से मिटा करके आया। नजर एक ही रास्ता मुझको आया ।।

रानी
 ब०त०- शुक्रिया किस जुबाँ से अदा मैं करूँ, आज तूने मेरे दिल को खुश कर दिया। जो भी माँगोगे फौरन गहाऊँगी मैं, मुझको खुश कर दिया मुझको खुश कर दिया ।।

सेनापति
बoत०- मेरी भी बातें रानी सुनो ध्यान से, एक ईनाम मुझको भी दिलवाइये। है तमन्ना हमारी यही आपसे, आज की रात रेखा से मिलवाइये ।।

रानी-वार्ता- यह कौन सी बड़ी बात है मेरे राजा ! आज रेखा से जरूर मिलवाऊँगी। सेनापति-वार्ता-आज अगरचे मेरी ख्वाहिश पूरी हो गई

तो सारी जिन्दगी चैन से कटेगी। ( सीन बनाइये दोनों आपस में बातें कर रहे थे, उधर सेनापति की बेटी पूजा 

दोनों की बातें सुन लेती है। )

पूजा-वार्ता-ओह ! मेरे पिताजी का एक रूप ऐसा भी . होगा मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी। तो फिर
आज मुझे रेखा की इज्जत बचाना ही पड़ेगा। 

शेर- पिताजी देखना इसका मजा तुमको चखाऊँगी। तुम्हारे हाथों से रेखा बहन को मैं बचाऊँगी ।।

( सीन बनाइये पूजा रेखा के पास आती है। रेखा पूजा को झिझोड़ते हुये रात में आने का कारण पूछती है। पूजा उसे बताती है।)

ब०त०- आज की रात बहना खतरनाक है, होने वाला तेरे साथ में घात है। अपने कानों से सुन करके मैं आ रही, माता सौतेली होती ही बज्जात है ।।

रेखा

ब०त०-पाँव पड़ती हूँ पूजा बहन ध्यान दो, आज लुटने से मुझको बचा लीजिये। वर्ना खाकर जहर खुद ही मर जाऊँगी, भूल मुझसे जो हुई हो सजा दीजिये । पूजा-वार्ता-बहन! तू चिन्ता न कर चल मेरे बिस्तर पर तू सो जा और मैं तेरे बिस्तर पर लेटती हूँ। फिर देखना मैं क्या करती हूँ।

रेखा- वार्ता- चलो बहन! तुम जैसा कहोगी मैं वैसा ही करूँगी।

 सीन बनाइये रेखा और पूजा आपस में बातें कर रही थी। उसी समय रानी अपनीआँखों में बनावटी आँसू लेकर आती है तथा उसी समय फूल सिंह भी आता है।)

 फूल सिंह

ब०त० मइया तू रो रही बहना भी रो रही, मन्त्री भी रो रहे हैं झुका करके सर । माजरा क्या है मुझको भी बतलाइये, बिन सुने मेरे दिल को न होता सबर।। 

रानी

ब०त०-आज भगवान ने मुझपे ढाया सितम, तेरे बाबू गये आज मुल्के अदम। सब्र होता नहीं धीर कैसे धरूँ, 
डाकुओं ने किया उनका किस्सा खतम ।।

 फूल सिंह

बoत०- हाय भगवान यह क्या से क्या हो गया, डूब कश्ती गई मेरी मझधार है। मैं इधर का रहा न उधर का रहा, आज सूना हुआ मेरा संसार है।।

 रेखा

बoत०-भइया मैं क्या करूँ और जाऊँ कहाँ, कैसे बाबू बिना भइया रह पाऊँगी। आज से जग में कोई हमारा नहीं, भइया खाकर जहर खुद ही मर जाऊँगी ।।

फूल सिंह-वार्ता- नहीं बहन ! नहीं तुम ऐसा नहीं करोगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ बहन सेनापति जी ! आखिर अचानक यह सब कैसे हो गया ?


सेनापति

कौ०- हम जा रहे थे रेखा का वर ढूढ़ने ईमान से। डाकू का दल बियावान में मारा पिता को जान से ।। फूल सिंह तुम ही बताओ मैं अकेला क्या करूँ । थरथराते थे जिगर माँगा दुआ भगवान से ।।


फूल सिंह 

कौ०- सेनापति यह सोच लो ये सब तुम्हारी चाल है।
 माता ने फैला दिया त्रिया चरित्र का जाल है ।। 
एक दिन तुम दोनों को ऐसी सजा दिलवाऊँगा। 
शीश पर मँडरायेगा जिस दम तुम्हारे काल है ।। 

सेनापति

ब०त०-फूल सिंह ज्यादा बढ़के ना बातें करो, धार देखा नहीं तुमने शमशीर का। मैंने ही भेजा राजन को मुल्के अदम, आज से मैं हूँ मालिक इस जागीर का ।। 

फूल सिंह

ब०त०-जैसे बापू को भेजा तू मुल्के अदम, आज तुझको भी जिन्दा न छोड़ेगें हम। रिश्ता जब माँ से कोई हमारा
नहीं, आज से रिश्ता कोई न जोड़ेगें हम।।

 रानी (कोडों से पीटते हुये)

ब०त०-छोटे मुँह बड़ी बातें इतनी करे, आज उस दिन का बदला चुकाऊँगी मैं। तूने चन्डालिन एक दिन कहा था मुझे, रूप चन्डालिन का अब दिखाऊँगी मैं ।। 

फूल सिंह

ब०त० - चाहे जितना सितम ढाओ सर पर मेरे, लेकिन बहना को मेरी सताओ नहीं। पाँव पड़ता हूँ माँ कुछ रहम तो करो, मेरी रेखा बहन को रुलाओ नहीं।। 

रेखा 
गमजदा- मेरे भइया बिरन हजारी बिलखेगी बहन तुम्हारी।
मर जाऊँगी मार कटारी ।। 

फूल सिंह गमजदा-मत रोओ बहन दुलारी, किस्मत फूट गयी हमारी। मिली ऐसी महतारी।। मत रोओ० ।।

रेखा शैर- कैसे कर लूँ सबर अब न होगा गुजर। तेरे गम की बदरिया है कारी।। 

 फूल सिंह शैर-दिल में करिये सबर, तेरी बाली उमर। तेरी रक्षा करेंगे बनवारी।। मत रोओ० ।। रेखा

शैर-भइया बाबू हमार गइले स्वर्ग सिधार। माँ मेरी बन गई नागिन कारी ।। 

शैर-सब्र बहना करो दिल में धीरज धरो। 'जख्मी' 
करते तेरा इन्तजारी ।। मत रोओ० ।। 

( सीन बनाइये रानी जल्लाद को बुलाकर फूल सिंह को खत्म करने का आदेश देती है और रात में सेनापति रेखा के कमरे में दाखिल होता है। रेखा की जगह अपनी बेटी पर टूट पड़ता है। उधर जल्लाद फूल सिंह को छोड़ देता है। (    चाँटा मार कर ) 

पूजा

बoत० - इश्क के भूखे पापी अधम भेड़िये, अपनी बेटी को भी तू पहचाना नहीं । तेरी नीयत का मुझको पता चल गया, नर्क में भी मिलेगा ठिकाना नहीं।।

शैर-लगा दी आग आ करके हमारी जिन्दगानी में। कहीं मर कमीना जा करके चुल्लू भर पानी में ।। जवानी आज भी गरचे सम्भाले न सम्भली हो । मिटा लो दिल की हसरत को खड़ी पूजा जवानी में ।।

सेनापति
ब०त०-भूल भारी हुई माफ कर दो लली, रेखा को मैं था समझा सही मान लो मुझसे अनजान में भूल भारी हुई, मैं शर्मिन्दा बेटी खुदी जान लो ।।

( सीन बनाइये सेनापति लज्जित होकर वहाँ से चला जाता है। उधर फूल सिंह मटकते हुये जंगल में पहुंचता है, वहाँ एक बाबा की कुटिया दिखाई पड़ी। बाबा उस वक्त सो रहे थे। फूल सिंह उन्हीं की सेवा करने में जुट गया, बाबा आँखें खोलकर।)

बाबा
ब०त०- तेरी सेवा से बेटा मैं खुश हो गया, माँग लो कोई वरदान दिल खोलकर। एक ही तुझको वरदान दे पाऊँगा, माँगना इसलिये बेटा खूब सोचकर ।।

फूल सिंह
ब०त०-अपनी अन्धी बहन के लिये बाबाजी, आपके चरणों में सर झुकाता हूँ मैं। ठीक आँखें हमारी बहन की करें, ऐसी उम्मीद ले करके आया हूँ मैं ।।

बाबा-वार्ता-बेटा ! यह बताओ, तुम्हारी बहन की शादी हुई है या नहीं। अगर शादी हो गई होगी तो इसका कोई इलाज नहीं है, अगर क्वांरी है तो उसकी आँखें ठीक हो जायेगी।

फूल सिंह-वार्ता- बाबा जी ! मेरी बहन की शादी अभी नहीं हुई है।

बाबा-वार्ता - तो फिर लो ! मैं तुम्हें अमर काजल देता हूँ और साथ ही साथ यह वरमाला भी देता हूँ। इस काजल को अपनी बहन की आँखों में लगा देना और यह माला भी दे देना। सुबह आँख खुलने पर जो सूरत उसे दिखाई दे, उसी के गले में माला डाल देगी तो सुखी रहेगी।

( सीन बनाने फूल सिंह माला व काजल लेकर बाबा के पाँव छूकर चल देता है। उधर सेनापति रेखा के पास पहुँचता है।)

सेनापति
बoत०-ऐ मेरी प्यारी मृगनयनी मृगलोचिनी, हंसिनी की तरह एक गुलफाम है। हँस के सीने से लगाऊँगा जबरन तुझे, हुस्न का तेरे पीना मुझे जाम है ।।

रेखा
ब०त०- बदनियत वाले कीड़े पड़ेंगे तुझे, नर्क में ही तू घुट घुट गुजारा करे। लाज औ शर्म तो शायद तू पी गया, इस तरह की नजर जो निहारा करे ।।

( सीन बनाइये सेनापति और रेखा में तकरार चल रही थी उसी समय रानी हाथ में कोडा लेकर आ जाती है और रेखा को पीटते हुये। )

रानी
बoत०- पापिनी गर तुझे यह गँवारा नहीं, मेरे घर में नहीं होगा तेरा गुजर। जा चली जा इसी में भलाई तेरी, छोड़ दे घर मेरा जा कहीं और मर ।।

रेखा

ब०त०-बेखता हूँ मेरी माँ सताओ नहीं, कुछ तो दिल में मेरी माँ रहम कीजिये। एक अन्धी को घर से निकालो नहीं, इस तरह यूँ ना जुल्मों सितम कीजिये।।

रानी

बoत०-घर में गर मेरे तू रहना ही चाहती, सेनापति के साथ सोना पड़ेगा तुझे। बात गरचे नहीं तुझको मन्जूर है, हर समय ऐसे रोना पड़ेगा तुझे ।।

रेखा
बoत०-ऐसी माता विधाता किसी को न दे, जैसे मुझको दिया आज भगवान है। माँ की ममता मुझे जिस तरह मिल रही, मेरी सौतेली माँ की ये पहचान है।।

(शीन बनाइये - रानी रेखा को मार कर उसे घर से निकाल देती है। रेखा गिरते-पड़ते भटकते हुये जंगल में बिलख-बिलख कर यह गीत गाती है। )

आसावरी मेरे ऊपर हुआ जुल्म भारी, भइया आकर खबर लो हमारी भइया जब से मुझे छोड़ आये, माँ ने मुझ पर सितम रोज ढाये। खाल खींचा बदन से हमारी, भइया०••••••••

सेनापति है बना नाग काला, अपने घर से मुझे माँ निकाला। फिर रही हूँ वन-वन में मारी,

भइया ०•••
आपका था मुझको सहारा, आप भी कर गये हैं किनारा। मार करके मर जाऊँ कटारी, भइया०•••••
इस विपत में मेरे काम आओ, 'जख्मी' भइया से मेरे मिलाओ, वरना होगी बदनामी तुम्हारी, भइया०•••••••••

( सीन बनाइये - बियाबान जंगल में रेखा बिलख-बिलख कर रो रही थी। कौशल सिंह उधर से जा रहा था। रेखा को देखकर।)

कौशल सिंह

ब०त० - रोने-धोने से निकले नतीजा न कुछ, भूखी प्यासी तू जंगल में मर जायेगी। चल तुझे कोठे पर आज पहुँचाऊँगा, जंगल में आखिर रेखा किधर जायेगी ।।

रेखा
ब०त०- कौशल भइया जरा सोचो क्या कह रहे, खून के रिश्ते में मैं हूँ तेरी बहन। भइया वेश्या बहन को बनाओ नहीं, पाँव पड़ती हूँ औ चूमती हूँ चरन ।।

कौशल सिंह

बoत०-सीधे समझा रहा मानती है नहीं, ऊपर से कर रही मुझसे तकरार है। चम्पा के कोठे पर बेंच दूँगा तुझे, रुपया मिल रहा पाँच हजार है।।

रेखा
बoत०- आबरू लुटने से पहले मर जाऊँगी, पर तेरे साथ हरगिज ना जाऊँगी मैं। या विधाता विपत से उबारो मुझे, लुट गई गर तो मुँह ना दिखाऊँगी मैं ।।

( सीन बनाइये कौशल सिंह रेखा का हाथ पकड़ कर घसीटने लगा। रेखा बचाओ-बचाओ चिल्लाती है। आवाज सुनकर पूजा आकर कौशल सिंह के सिर पर पत्थर मार देती है। )

पूजा
बoत०- जब तलक मैं हूँ जिन्दा इस संसार में, रेखा पर आँच आने नहीं दूँगी मैं। इस अभागिन के ही साथ मर जाऊँगी, जीते जी उसको जाने नहीं दूँगी मैं ।।

कौशल सिंह ( पिस्टल निकाल कर

ब०त०- सबसे पहले तुझे ही सिखा दूँ सबक, बाद में इसको तो लेकर ही जाऊँगा। ले मजा तू भी चख जो हमदर्दी किया, बाद में कोठे पर तुझको पहुँचाऊँगा ।।

( सीन बनाइये कौशल सिंह पिस्टल से पूजा के सिर पर वार करता है, पूजा का सर फट जाता है, वह बेहोश हो जाती है। कौशल सिंह रेखा को चम्पा बाई के कोठे पर ले आता है। उधर फूल सिंह बाबा के पास से अमर काजल लेकर आ रहा था। रास्ते में उसे कराहने की आवाज सुनाई पड़ी। फूल सिंह पास में आता है और पानी का छींटा मारता है, पूजा होश मे आती है और फूल सिंह से लिपट जाती है। )

पूजा

बत०- कौशल सिंह ने हमारी ये हालत किया, और रेखा बहन को पकड़ ले गया। चम्पाबाई के कोठे पर बेचेगा वह, बाँध जञ्जीर में वह जकड़ ले गया। इल्तजा है हमारी यही आपसे, इज्जत रेखा बहन की बचा लीजिये। छोड़ दो मुझको यूँ ही मेरे हाल पर, कौशल को अपने हाथों सजा दीजिये ।।

फूल सिंह
ब०त०-साथ में चल सको तो हमारे चलो, आज कौशल से बदला चुकायेंगे हम। रेखा मेरी बहन रोती होगी वहाँ, आज मुल्के अदम को पठायेंगे हम।।

( सीन बनाइये फूल सिंह व पूजा चम्पा बाई के कोठे पर पहुंचते हैं। उधर चम्पा बाई के कोठे पर कौशल सिंह रेखा को मार-मार कर नाचने पर मजबूर करता है।)

कौशल सिंह
कौ०- नहीं सामने सबके आँसू बहाना। पड़ेगा तुझे आज मुजरा सुनाना ।। इसे नाचना चम्पाबाई सिखा दो । गायेगी महफिल में फिल्मी तराना ।।

रेखा
कौ०- मुझे कौशल भइया ना वेश्या बनाओ। बहन हूँ तुम्हारी सितम यूँ न ढाओ ।। तसल्ली न हो तो मुझे मार डालो। नहीं एक अन्धी को इतना सताओ ।।

कौशल सिंह
कौ०- तेरा फूल सिंह भाई दुश्मन हमारा। मेरी माँ को चन्डालिन कहकर पुकारा।। उस दिन का बदला चुकाना है रेखा। समझ जायेगी माजरा आज सारा ।।

रेखा
कौ०- मुझ अन्धी को क्यों सताते हो भइया । 
         नहीं फूल के सम्मुख जाते हो भइया ।।
          अगर दम हो तो मेरे भाई से लड़ लो ।
          नहीं ईश्वर का खौफ खाते हो भइया ।। -

( सीन बनाइये-फूल सिंह आता है और कौशल सिंह का अत्याचार रेखा पर देखकर क्रोध से पागल हो जाता है।)

फूल सिंह ( कोड़ा छीनकर )

बoत०- मेरी अन्धी बहन पर सितम कर रहा, आज महफिल में तुझको नचायेंगे हम। जिस तरह रो रही है। हमारी बहन, उस तरह से तुझे भी रुलायेंगे हम।।

कौशल सिंह
बoत०-मुझसे गलती हुई माफ भइया करो, उम्र भर अब नहीं होगी ऐसी खता। अब दुबारा मुझे माफ करना नहीं, अपने हाथों से ही देना मुझको सजा।।

फूल सिंह
ब०त०-गलतियाँ माफ करने के काबिल नहीं, अपनी करनी का फल आज पायेगा तू। भाई के नाम पर तू कलंक बन गया, सीधे मुल्के अदम आज जायेगा तू।।

पूजा
ब०त०-जैसे रेखा बहन को सताया है तू, उस तरह आज तुझको सताऊँगी मैं । मुझको जख्मी किया जैसे पिस्तौल से, आज तुझको भी जख्मी बनाऊँगी मैं ।।

( सीन बनाइये पूजा पिस्तौल की मूँठ से कौशल सिंह के सिर पर वार कर देती है। कौशल सिंह गिर पड़ता है. फूल सिंह उसे पानी पिला-पिला कर मारता है और जब कौशल सिंह बेहोश हो जाता है, तब फूल सिंह रेखा को अपने साथ लेकर वहाँ से चल देता है। कौशल सिंह आकर अपनी माँ से बताता है।)

रानी
बoत०- मेरे नूरे नजर मेरे लख्ते जिगर, किस तरह चोट सिर में तुम्हारे लगी। फट गया है कलेजा तुझे देखकर, चोट तेरे नहीं दिल में मेरे लगी ।।

कौशल सिंह
बoत०- क्या कहूँ माँ नहीं कुछ भी जाता कहा, फूल सिंह ने है ढाया ये जुल्मों सितम। आ रहे थे हम माँ अपने घर के लिये, भाग्य से बच गये वरना करता खतम ।।

( सीन बनाइये-रानी इन्सपेक्टर खन्ना को बुलवा कर कहती है। )

रानी
ब०त०-फूल सिंह मेरे बेटे पर हमला किया, चौबीस घन्टे के अन्दर पकड़ लाइये। पाँच हज्जार रुपया दूँ ईनाम में, बाँध जञ्जीर में यूँ जकड़ लाइये ।।

इन्सपेक्टर
ब०त०-वादा करता हूँ रानी सुनो ध्यान से, चौबीस घन्टे के अन्दर पकड़ लाऊँगा। फर्ज अपना निभाऊँगा हर हाल में, उसको जञ्जीर में जकड़ लाऊँगा ।।

( सीन बनाइये इन्सपेक्टर फूल सिंह को गिरफ्तार करने चल देता है। उधर पूजा, फूल सिंह व रेखा से घर वापस चलने की मिन्नत करती है।)

पूजा
ब०त०-दोनों भाई बहन घर चलो साथ में, घर तुम्हारा है चल कर सम्भालो उसे इस तरह से भटकते फिरोगे कहाँ, रानी माँ है कमीनी निकालो उसे ।।

फूल सिंह
ब०त०-लेकर अन्धी बहन को घर जाऊँ नहीं, रेखा की आँखों की रोशनी लाऊँगा। आज मेरी बहन ठीक हो जायेगी, कल खुदी पूजा मैं अपने घर आऊँगा ।।

पूजा
ब०त०- इल्तजा है हमारी यह आपसे, अपने चरणों की दासी बना लो मुझे। बनके पत्नी रहूँ ताउमर साथ में, पाँव पड़ती हूँ अब न सजा दो मुझे ।।

फूल सिंह
ब०त० - पूजा क्या कह रही हो जरा सोच लो, बाप कातिल है तेरा मेरे बाप का। जब तलक इसका बदला चुकाऊँ नहीं, तब तलक न भरेगा घड़ा पाप का ।।

पूजा-वार्ता-फूल सिंह! मैं तुम्हारी कसम खाकर कहती हूँ कि आप मुझे अपनी पत्नी बना लो। फिर देखना कि तुम्हारा बदला मैं खुदी अपने बाप से ना चुकाया तो मेरा नाम नहीं ।।

फूल सिंह-वार्ता-पूजा ! आज से मैं तुम्हें अपनी धर्मपत्नी का दर्जा देता हूँ।

( सीन बनाइये-फूल सिंह अपना अँगूठा चीरकर पूजा की माँग भर देता है। पूजा खुशी-खुशी घर चली जाती है। उधर रात में फूल सिंह रेखा के आँखों में अमर काजल लगा कर माला दे देता है और कहता है कि जब तुम्हें दिखाई पड़ने लगे तो. जिसकी सूरत तुम्हें नजर आये उसी के गले में यह माला डाल देना। फूल सिंह इतना कहकर चला जाता है। उधर फूल सिंह को गिरफ्तार करने इन्सपेक्टर आता है, और रेखा की चादर खींचता है। रेखा को इन्सपेक्टर की सूरत दिखाई देती है तथा माला इन्सपेक्टर के गले में डाल देती है। )

इन्सपेक्टर
बoत०- हम पुलिस वालों से करती हो मुँहलगी, लड़कियाँ हरकत से बाज आती नहीं। फूल सिंह को पकड़ने को आया हूँ मैं, है कहाँ क्यों हो मुझसे बताती नहीं ।।

रेखा
ब०त०- आपसे हाथ जोड़कर विनती करूँ, कल तलक प्राणपति मैं नयनहीन थी। भाग्य से आज आँखें मुझे मिल गयी, रोशनी मिल गयी मैं जो गमगीन थी।।

फूल सिंह
ब०त० - जीजा जी आज तक मैं था ये देखता, आज ख्वाहिश हमारी हुई पूर है। कर लो मुझको गिरफ्तार तुम शौक से, फूल रेखा बहन से नहीं दूर है।।

इन्सपेक्टर
बoत०-फूल सिंह साथ में तुम हमारे चलो, साला जीजा का रिश्ता निभायेंगे हम जिस तरह से सताया है माँ ने तुम्हें, दोनों मिलकर उन्हें भी सतायेंगे हम।।

( सीन बनाइये इन्सपेक्टर, रेखा व फूल सिंह हवेली पर आते हैं। सेनापति व रानी इन्सपेक्टर को देखकर।)

रानी
ब०त०- क्यों रे अन्धी मेरे घर में फिर आ गयी, तेरी इज्जत यहाँ पर ना बच पायेगी। फूल सिंह को तेरे फाँसी दिलवाऊँगी, मेरे हाथों से बचकर कहाँ जायेगी ।।

रेखा
ब०त०- माताजी आँख खोलो इधर ध्यान दो, आखिरी आपसे करती हूँ बन्दगी। मेरे आँखों में माँ रोशनी आ गई, खन्ना साहब को मैं सौंप दी जिन्दगी ।।

( सीन बनाइये सेनापति पिस्टल निकाल कर फूल सिंह पर लगाना चाहता है. उसी समय पूजा पीछे से अपने बाप को ललकारती है। )

पूजा
बoत०-बस पिताजी वहीं पर कदम रोक लो, एक कदम पाँव आगे बढ़ाना नहीं। फूल सिंह को हमारे अगर कुछ कहा, चूक सकता हमारा निशाना नहीं।।

( सीन बनाइये फिर क्या था, पूजा, रेखा, फूल सिंह, इन्सपेक्टर, सेनापति व रानी की वो दुर्गत करते हैं कि उनकी हुलिया भी पहचान में नहीं आती है। )

रानी
बoत०- मुझसे गलती हुयी माफ बेटी करो, बख्श दो रानी जिन्दगी एक नजर के लिये। कभी भूल कोई करूँगी नहीं, सीख हमने लिया उम्र भर के लिये ।।

फूल सिंह
ब०त०- माफ तो मैंने तेरी खता कर दिया, बस उसी के लिये हूँ तुझे छोड़ता। अन्धी की जिन्दगी आज न देखो माँ, इसलिये आँखें दोनों तेरी फोड़ता ।।

( सीन बनाइये फूल सिंह रानी की दोनों आँख फोड़ देता है। रानी तड़पते. हुये बेहोश हो जाती है। सेनापति रानी का हाल देखकर भागता है तब तक पूजा सेनापति पर फायर कर देती है, सेनापति मर जाता है।)

कवि
ब०त०- पूजा के फूल को पूजा फिर मिल गयी, रेखा के आँख को रोशनी मिल गई। फूल सिंह को मिली खोई जागीर सब, खन्ना से रेखा को जिन्दगी मिल गयी ।।

ब०त०- आपस में सब खुशी से मिल गये, उम्र भर के लिये रानी यूँ सो गई। 'रामू जख्मी' यही से कलम रोकते, बस कहानी यहीं से खतम हो गई।।

दोहा- किया कवी जो कल्पना, मिला अधिक आनन्द । 'रामू जख्मी' कर रहे, कलम यहाँ से बन्द ।।

* समाप्त

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